दुख में सुख की तलाश जारी है
दुख में सुख की तलाश जारी है
संगीता कुमारी कवयित्री / लेखिका
विपदा अचानक ही आती है। कभी भी दस्तक देकर नहीं आती। पिछले दो महीने से विश्व के साथ भारत भी कोरोना से जूझ रहा है। हम सभी घर के भीतर रहकर भी सुख की तलाश कर रहे हैं। रामायण, महाभारत, चाणक्य, संकट मोचन जैसे धारावाहिक देखकर सकरात्मक ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं। सुख दुख जीवन के दो पहलू हैं यह बात सभी को पता है मगर इन्हें हकीकत में महसूस भी कर रहे हैं। दिन रात पूरा परिवार एक दूसरे को देख देखकर और भी जुड़ा जा रहा है। कहीं केरम बोर्ड तो कहीं लूडो, शतरंज खेल नौंक-झौक किया जा रहा है। बेशक घर में सभी हैं बंद फिर भी फुर्सत के मिले क्षणों को उत्सव की तरह जिया जा रहा है। कहते हैं जहाँ चार बर्तन होते हैं वहीं खनखने की आवाज आती है। आजकल चौबीसों घंटे पूरा परिवार साथ रहता है तो जानिये घर घर कितनी आवाज आती है! बच्चे आपस में भिड़ें तो उन्हें अभिवावक डाँट लगा देते हैं। माता पिता में हो मनमुटाव तब वो घर से बाहर जा नहीं सकते इसलिये टीवी देखने या घर के कामकाज में स्वयं को उलझा लेते हैं।
रौनकें बढ़ गयी हैं। सयंम की घड़ी है। बालक चिपके रहें माँ के साथ; पिता करे पढ़ाई की बात। युवा युवती अधिक समय नेट पर बने रहते हैं। दूसरी तरफ अभिवावक उनके नेट की सर्फिंग पर नजर रखते हैं। मोबाईल का प्रयोग कौन कितना करता है? घर का सदस्य प्रत्येक सदस्य की खबर रखता है। खबर रखने का मौसम आ गया है। खबरें देश विदेश समाज की सब हर दम रखते थे। अपने करीबियों की खबरों से बेखबर रहते थे। अब पिछले दो माह से ऐसा नहीं हो रहा है। देश विदेश समाज की खबरों को सपरिवार संग देखा जा रहा है। खबरों को तर्क से साथ विचारों का आदान प्रदान करते हैं। पक्ष विपक्ष सबकी चर्चा करते हुए बहस भी होती है। खबरों व धर्म कर्म की बातों से ज्ञान का पुंज बढ़ता है। ज्ञान का पुंज बढ़ने से सकारात्मकता आती है। सकारात्मकता आने से नकारात्मक ऊर्जा जा नाश होता है जिससे स्वस्थ तन मन होता है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। विचरन करना उसका स्वभाव है। इसलिये कभी कभी कोरोना के कारण घर से ना निकल पाने का गम भी होता है। बेशक उलझे हुए हैं हम सभी कहीं ना कहीं; फिर भी मन के भीतर कोरोना का भय बना रहता है। सब सुरक्षित रहें यही कामना करते हैं क्योंकि कोरोना का एक मरीज एक लाख तक लोगों को संक्रमित कर सकता है। तीन ज़ोन बने हुए हरा, संतरी, लाल। हरा ज़ोन मस्ती से घूम फिर रहा है, जिसे देख लाल ज़ोन लाल पीला हो रहा है। लाल, हरे के बीच संतरी अपने आपको साधते हुए थोड़ा थोड़ा खुल रहा है। जो खुला नहीं उसे खुलने की टेंशन है; और जो खुल गया है उसे कोरोना से बचने की टेंशन है। इन सब टेंशनों के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि अब पिछले दो माह से मनुष्य शहरों में भी शुद्ध सांस ले रहा है।
गरीब मजदूर अब शहरों की शुद्ध हवा छोड़ अपने अपने गाँव की तरफ वापिस जा रहे हैं। शहरों की शुद्ध हवा उन्हें रोटी नहीं दे रही इसलिये उन्हें लगता कि गाँवों के खुले खेत खलिहान बुला रहे हैं। एक आस बंधी हैं उनके जीवन में की गाँव में ही सरकार कोई ऐसा प्रबंध करेगी कि उन्हें रोजी रोटी मिल जायेगी। कुछ और नहीं तो कम से कम खेतों में मजदूरी ही मिल जायेगी। आस की मजबूती ने उनके पैरों को मजबूत बना दिया है। मीलों का सफर तभी तो उनके पैरों ने तय किया है। दुख में सुख को तलाश लेना ही सुखद है।……