आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का अलख जगा रही है दयामनी

आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा का अलख जगा रही है दयामनी
अवंतिका राज चौधरी
संवाददाता ,साउथ एशिया 24 * 7
झारखंड
दयामनी बारला झारखंड की जानी-मानी समाजसेविका और आदिवासी पत्रकार हैं । दयामनी संघर्ष की मिशाल हैं ।आज के जमाने में भी कोई समाज के लिए जीना-मरना चाहता है ,तो इसका जीवंत उदाहरण है दयामनी बारला
अपने बचपन मे उन्होंने काफी दुख देखा, पिता की जमीन साहुकारों, व्दारा छिन जाने के बाद उन्हे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी । एक जमीन न होने से जीवन कितना बदल जाता है। बारला ने काफी नजदीक से देखा और सहा भी है ।इसलिए उन्होने शपथ ली कि किसी की जमीन छिनने नही देंगी । इसके लिए उन्होंने ‘जमीन बचाव आंदोलन’ आरंभ किया। मूलवासी होने के कारण,उन्होंने सभी आदिवासियों को बच्चों के नजर से देखा और उनके साथ हमेशा खड़ी रही और अब तक है।
समाज सेवा के लिए अपने निजी जीवन को दरकिनार कर देना,इसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए।इनके उच्चविचार ऐसे है-अगर उनका अपना बच्चा होता तो,एक बच्चे का जीवन बनाने के लिए छः साल देने पड़ते। इस काल में तीन करोड़ बच्चो (मूलवासियों)का जीवन अंधकारमय हो जाएगा। इसलिए उन्होंने झारखंड के सभी बच्चो को ही अपना बच्चा माना ।जमीन आंदोलन को लेकर उन्हे जेल की यातनाएँ भी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होने हार नहीं मानी और हालात का सामना किया ।
जीवन के एक मोड़ ने उन्हें कलम उठाने को प्रेरित किया।आदिवासियो के अधिकार तथा उन्हे जागरूक करने के लिए उन्होने पत्रिकाएँ लिखने की ओर पहल की । लेखन की ताकत ने उन्हे अलग पहचान दिलाई तथा लोगों को जागरूक कर पाने में वे सफल भी रहीं ।
श्रीमती बारला काफी हँसमुख व सरल स्वाभाव की हैं ।अपना जीवन समाज को समर्पित कर भी खुद को कुछ न समझना महानता का प्रतीक है । दयामनी अपने जीवन के आखिरी पलों को भी समाज को अर्पित करना चाहती हैं । दयामनी फिलहाल अपने संघर्षों से आदिवासी क्षेत्रों में नई इबारत लिख रही हैं ।खासतौर से आदिवासी बाहुल्य इलाकों में पढ़ाने का बीड़ा भी उठाया है आज उनके पर आए हुए छात्र छात्राएं सरकारी नौकरी कर रहे हैं।