आर्थिक मंदी में खाद्य पदार्थों की चढ़ती क़ीमतें

आर्थिक मंदी में खाद्य पदार्थों की चढ़ती क़ीमतें
प्रो लल्लन प्रसाद
कोविद १९ जनित महामारी महीनों लाकडाउन के बावजूद नियन्त्रण में नहीं आ रही है। दो करोड से अधिक लोग पूरे विश्व में संक्रमित हो चुके हैं, भारत मे यह संख्या २५ लाख के ऊपर जा चुकी है, म्रित्यु दर भारत मे अधिकांश देशों से कम अवश्य है जो कि यहाँ के रहन-सहन, खान-पान एवं सरकार द्वारा समय पर लाकडाउन और स्वास्थ्य सेवाओं के कारण है। महामारी के कारण पूरा विश्व अप्रत्याशित मंदी से गुज़र रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार इस महामारी के कारण वर्तमान वित्त वर्ष में विश्व जीडीपी में -५ प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, भारत की जीडीपी -४.५ प्रतिशत सिकुड़ सकती है। रिजर्व बैंक के डिप्ट गवर्नर के अनुसार अर्थव्यवस्था को जो क्षति हुयी है उससे उभरने में काफ़ी वक़्त लग सकता है। आज़ादी मिलने बाद चौथी बार भारत की अर्थव्यवस्था मन्दी का शिकार हुई है, यह मंदी पिछली सभी मन्दियों से अधिक हानिकारक है। रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की यह सबसे बड़ी मंदी साबित हो सकती है। इसमें माँग और पूर्ति दोनों ही धराशायी हो गयी हैं। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार जी डी पी का १० प्रतिशत सदा के लिये जा चुका है। देश की पिछली तीन मंदियां: १९५८, १९६६ एवं १९८०, मानसून की बारिश में भारी कमी के कारण खेती की पैदावार कम होने की वजह से थी, जब कि वर्तमान मंदी कोविद महामारी के कारण है जिसने सारी आर्थिक गतिविधियों में भारी कमी ला दी है। कल कारख़ानों का उत्पादन कम होगया है, यातायात, होटल, पर्यटन और सभी व्यवसाय और सेवाएँ बुरी तरह से प्रभावित हुयी हैं, बेरोज़गारी ने पिछले कई दशकों के रिकार्ड तोड़ दिये हैं। सबसे अधिक प्रभावित असंगठित मज़दूर हैं जो देश की आबादी का बड़ा हिस्सा हैं। सरकार ने इनकी सहायता के लिये जो घोषणायें अब तक की हैं उनका कार्यान्वयन ढीला रहा है, बड़ी संख्या मे मज़दूर लाभ से वंचित रहे। विभिन्न क्षेत्रों के लिये ₹२१लाख करोड़ का पैकेज, जो विश्व की कई विकसित देशों के समकक्ष मानी जा रही है, भी कम पड़ गयी है। सरकार नये पैकेज का एलान कर सकती है।
मंदी में क़ीमतें आमतौर से गिरती हैं क्योंकि उत्पादन और कारोबार में कमी, बेरोज़गारी और आमदनी में गिरावट के कारण वस्तुओं व सेवाओं के माँग में कमी आ जाती है। किन्तु कुछ परिस्थितियाँ इनका अपवाद होती हैं जैसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों में एकाएक भारी बढ़त से ग़ैर तेल उत्पादक देशों में तेल के अलावा अन्य वस्तुओं की क़ीमतें भी ऊपर जाने लगती हैं। कोविद महामारी जनित मंदी सामान्य मंदी से भिन्न है, इसमें लाकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था के दोनों पाँव : माँग और पूर्ति लड़खड़ो लगते हैं। कुछ वस्त्ओं की माँग कम नहीं होती तो कुछ की नहीं के बराबर रह जाती है, जैसे खाद्य पदार्थों की माँग बनी रहती है, किन्तु मकान, कार, टीवी जैसी भारी क़ीमत की चीजों की मांग गिर जाती है। यातायात के साधन बाधित होने से सप्लायी बाधित हो जाती है जो क़ीमतों के बढ़ने का बड़ा कारण बन जाती हैं। तीन महीने के लगभग पूरे लाकडाउन और उसके बाद आंशिक जो अभी भी चल रहा है, इसके अतिरिक्त देश के बड़े हिस्से में बाढ़ और अन्य प्राक्रितिक प्रकोपों के कारण लम्बे समय से यातायात में व्यवधान है जो खाद्य पदार्थों सहित अन्य आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की सप्लाई बाधित करती रही है जिससे क़ीमतों में चढ़ाव आया। जुलाई २०२० मे उपभोक्ता सूचकांक पिछले वर्ष की जुलाई से ६.९ प्रतिशत रहा जो रिजर्व बबैंक के सुरक्षित मानक ४% (+/-२) से ऊपर है और चिंता का कारण है। इसका सबसे अधिक प्रभाव ग़रीबों और निम्न मध्यम वर्ग पर पड़ रहा है। उम्मीद की जा रही है कि अगली दो तिमाहियों मे क़ीमतें धीरे धीरे नीचे जायेंगी। क़ीमतों में बढ़ाव के कारण इस महीने रिजर्व बैंक न रैपो रेट में कमी नही की क्योंकि इससे मुद्रा का प्रवाह (लिक्विडिटी) बढ़ता जो क़ीमतों में और व्रिद्धि कर सकता था।
उपभोक्ता क़ीमतों का सूचकांक खाद्य और पेय पदार्थ, ईंधन, कपड़े, मकान, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संचार, पान, तम्बाकू आदि रोजमर् की ज़रूरतों पर ख़र्च के आधार पर बनाया जाता है, इसमें सबसे अधिक वेटेज ४५.६% खाद्य एवं पेय पदार्थों को दिया जाता है जिसमें सभी खाद्यान्न, दालें, दूध एवं दुग्ध पदार्थ, माँस, मछली, फल, सब्ज़ियाँ, घी, तेल आदि शामिल हैं। इन वस्तुओं की क़ीमतों में व्रिद्धि सूचकांक को अधिक प्रभावित करती जो स्थिति इस समय बनी हुयी है। अधिकांश अन्य उपभोक्ता पदार्थों की क़ीमतें गिरी हुयी हैं क्यों कि उनकी माँग कम है। गाँवों की अपेक्षा शहरों मे खाद्य और पेय पदार्थ महँगे हैं। महामारी का प्रकोप शहरोंमे अधिक है देहातों में कम। सच तो यह है कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कोविद महामारी से लड़ने में सुरक्षा कवच का काम कर रही है, ग़ल्ले का इतना बडा भंडार देश में है कि भुखमरी की स्थिति नहीं आयी, सरकार ग़रीबों को मुफ़्त ग़ल्ला देने में भी सक्षम रही।