पढ़ लेना मुझे किताबों में

पढ़ लेना मुझे किताबों में
जज्बात बिखरने लग जाए
मन बावरा पल- पल घबराए
सवालों के हजारों घेरे हों
मिलते न बांहों के फेरे हों
तब ढूंढना रोज ख्वाबों में
पढ़ लेना मुझे किताबों में।
जब जिक्र कहीं मेरा हो जाए
नजर नजरों से टकरा जाए
कदम- कदम पर गजल हो बिखरी
शख्सियत मेरी हर्फों में निखरी।
बिसरी बातें तब लाना लबों में
पढ़ लेना मुझे किताबों में।
टूटा बदन सिहर सा जाए
पांव के छाले तड़पाए
चलते-चलते रुक जाओ तो
यादों में कहीं उलझ जाओ तो।
पंखुड़ी को पलटना गुलाबों में
पढ़ लेना मुझे किताबों में।
शीतल बूंदें भी आग बन जाए
तितली उड़कर फाग में खो जाए
नन्हीं कोंपले फिर चटखने लगे तो
नीड़ों में पंछी चहकने लगे तो।
फिर खो जाना बीती शामों में
पढ़ लेना मुझे किताबों में।
शाशि देवली, चमोली उत्तराखंड तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित लेखिका, कवियत्री, शिक्षिका