कभी ना आए मुड़ के ये साल

कभी ना आये मुड़ के ये साल
By नेहा झा
ना अचारों की खुशबू,
ना बर्फ की चुस्की,
ना गन्ने का रस,
ना मटके की कुल्फी
एक साल जिसने…
न शहनाई,ना बारात,
न ढ़ोल तासे, ना महफ़िल
में रौनक।
एक साल ऐसा जिसने
किया कमाल।
ना मौसम का मज़ा
ना दोस्तों का डेरा
ना आना किसी का
ना जाना कहीं।
एक साल ऐसा जिसने
किया कमाल।
ना ट्रेन का सफर
ना बस की भीड़।
ना फ्लाइट की बुकिंग,
ना टैक्सी का इंतेज़ार।
एक साल ऐसा जिसने
किया कमाल।
ना मंदिर की घंटी,
ना पूजा की थाली,
ना भक्तों की कतार,
ना भगवान का प्रसाद।
हाँ एक साल जिसने किया
कमाल।
जहाँ मौत का तांडव,
दर्द की चीख पुकार
अर्थी तरसी काँधे को,
न देखा अपनो को
आखिरी बार।
एक साल ऐसा…
अपनों के लिए अपने तरसे,
सुबह शाम बस आँसू बरसे,
भूख गरीबी ने किया बेहाल।
एक साल ऐसा
जिसने किया कमाल।
याद रहेगा सदा
इस साल का मलाल,
जीवन में फिर
कभी न आये ऐसा साल।