हरे उपवन सी मेरी ज़िन्दगी

हरे उपवन सी मेरी ज़िन्दगी
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कविता बिष्ट
लेखिका
हरे उपवन सी लगे मुझे मेरी ज़िंदगी
हर दिशा महकने लगी है मेरी ज़िंदगी
माली ने किया श्रृंगार है आज धरा का
रूप यौवन खिलने लगी है मेरी ज़िंदगी
नेह सागर सा मन मेरा मचलने लगा
द्वार खड़ी मंज़िल मिली है मेरी ज़िंदगी
नदियों सी इठलाकर चली है राहों में
बड़ी खूबसूरत मिली है मेरी ज़िंदगी
यौवन आज झूमकर सावन सा लगा है
प्रेम बन्धन में यूँ बंधी है मेरी ज़िंदगी
कविता ने पुकारा सजन पहलू में आ गए
अमलताश सी खिलने लगी है मेरी ज़िंदगी