समंदर

समंदर
सितारों से कहाँ होती रात रोशन,
सवेरे तक कहाँ होती बात पूरी..
बरखा में भी रहती आंखें सूर्ख,
यूँ करवटों में रहती नींद अधूरी
सवालों का सैलाब, समंदर के अंदर,
भीषण काया, मासूम बिखरें चहरे
बस दिखता अंत हीन अंबर—
रह जाता जलमग्न जीवन जर्जर..
जीवन का सफर, सूखेपन का कहर ,
मृत घोषित सपनों की आती बू …
कुछ राहत का सरकारी मरहम ,
कुछ बेफिक्री ज़िद का आलम
और फिर वह फैला समंदर…..
By लेखिका नमिता