श्मशान

श्मशान
घर मकान सा लगता हैं..
गौर से देखो
हर कोई व्यापार करता है,
साया भी पराया लगता हैं |
आइने से डरता, हर बंदा
जरुरत से झुक गया
चश्मा लगा कर जब देखा
सबके अंदर कुछ मर गया
हर शक्श अपनी लाश ढोता हैं
मरे रुह की बू भी छिपाता हैं |
हर चेहरा हंसता हैं
मुखौटा यहाँ खुब बिकता हैं,
ना आग, ना धुआँ, ना रुदाली
अंदर चिता सा जलता हैं….
By लेखिका नमिता