Gurupurnima गुरु पूर्णिमा का महत्व, गुरु की महिमा का शिष्य कर रहे बखान

गुरु पूर्णिमा का महत्व, गुरु की महिमा का शिष्य कर रहे बखान
By ऋषिका द्विवेदी साउथ एशिया 24 * 7 देहरादून
आज गुरु पूर्णिमा है देश में गुरु पूर्णिमा के त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है सिर्फ अपने गुरु की आज के दिन पूजा अर्चना कर रहे हैं भारत में गुरु और शिष्य की परंपरा बहुत प्राचीन है इस प्रथा को आज भी देखा जा सकता है जगह-जगह गुरु पूर्णिमा के मौके पर धार्मिक आयोजन होते हैं और गुरु की महिमा का बखान होता है
पुराने ग्रंथों के अनुसार ऋषि पराशर और एक मछुआरे की पुत्री सत्यवती के पुत्र महाभारत के लेखक वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने महाभारत की रचना की। कहते हैं कि सरस्वती कि उन पर असीम अनुकंपा थी उन्हें किसी भी शास्त्र और ग्रंथ को याद करने की जरूरत नहीं थी । यह त्योहार भारत नेपाल एवं भूटान में हिंदू बुध और जैन अपने अलग-अलग अंदाज में मनाते हैं। इस दिन सभी छात्र अपने शिक्षकों को सम्मानित करते हैं क्योंकि उन्होंने बिना किसी तरह के भेदभाव से मुक्त होकर उन्हें ज्ञान के भंडार से रूबरू करते हैं।
गुरु संस्कृत के 2 शब्दों को मिलाकर बनता है जिसका अर्थ होता है ”गु” जिसका अर्थ होता है “अंधेरा” और ”रू” जिसका अर्थ होता है ”अंधेरे को मिटाने वाला” अर्थात गुरु वह व्यक्ति है ”जो अंधेरे को मिटाता है और जीवन में नई रोशनी लाता है” |
बुद्धिस्ट सावन के महीने यानी जुलाई से लेकर अक्टूबर तक अपने मॉनेस्ट्री में रहकर साधना करते हैं जहां वे मीट, शराब और अपने भीतर बसे सारे बुरे ख्यालों का त्याग कर देते हैं।
हिंदू भक्त वेदव्यास द्वारा लिखी हुई त्रिलोक गुहास में लिखी हुई शिक्षा भरी ज्ञान की बातों को भजन एवं कीर्तन के द्वारा याद करते हैं और प्रसाद को बांटते हैं।।नेपाल में छात्र अपने शिक्षकों को गुलदस्ते और टोपियां पहना कर उन्हें सम्मानित करते हैं।
इस दिन एक मंत्र बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और वह मंत्र है “गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः” |
गुरु पूर्णिमा के मौके पर इस साल बड़े पैमाने पर कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जा रहा है । कोविड 19 की गाइडलाइंस की वजह से हरिद्वार में जहां गंगा स्नान नहीं हो रहा है। वही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ,दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश ,राजस्थान ,बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में भी कोविड-19 एलाइस के चलते बड़े कार्यक्रम बड़े कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं। मगर गुरु और शिष्य की परंपरा को कायम रखने के लिए छोटे-छोटे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।