चेहरे

चेहरे
जाने से चेहरे, कुछ अनजाने ,
आते जाते मिलते हैं,
संभल कर चलते हैं,
ज्यादा बोलने से बचते हैं ,
अकेले भी खुद में परेशान से,
सबके साथ भी तन्हा दिखते हैं,
वक्त की सुई सा भागे सब,
पर लम्हो में ना जिए कोई…
यूँ बेसब्री में दिन काटे ,
क्यों जीने के पैमाने बने,
यूँ ही नहीं हम दीवाने लगे…
हर परदे के पीछे चेहरा हैं ,
हर चेहरे के पीछे पर्दा हैं,
सब चेहरा काम में खोया हैं ,
सच हैं — खोया खोया सा हैं…
तबियत पूछना तो लाज़मी हैं ,
हर चेहरा बनिए सा दिखता हैं,
ज़ख्म हैं, पर दिखाते न हैं,
यूँ तो अपनों से ही कतराते हैं ,
नज़रे मिलते ही नज़रे चुराते हैं,
प्याला छलक रहा हैं,सम्भलते नहीं,
शीशे तो बहुत है,कोई संवरता नहीं,
मकान में रहतेसब,अब कोई घर नहीं..
नमिता