जीवन में कथा को उतारने वाले वक्ता से ही कथा श्रवण करें – मुकुंदानंद ब्रह्मचारी

जीवन में कथा को उतारने वाले वक्ता से ही कथा श्रवण करें
मुकुंदानंद ब्रह्मचारी
ब्यूरो रिपोर्ट
श्रीमद्भागवत की कथा हमें अवश्य सुननी चाहिए और कथा को अपने जीवन में उतार लेना चाहिए। कथा में कहे गये उपदेशों के अनुसार ही वक्ता को आचरण करने वाला होना चाहिए। पाखण्डी से कथा श्रवण नही करना चाहिए। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रारम्भ में ही वक्ता के गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद् भागवत गीता में 4 तरह के भक्तों का वर्णन किया है
4 तरह के भक्त होते हैं अर्थार्थी आर्त जिज्ञासु और ज्ञानी चार प्रकार के भक्तों का भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में विस्तार पूर्वक वर्णन किया है उन्होंने यह भी बताया है कि ऐसे भक्त जो सांसारिक पदार्थों के प्राप्ति के लिए ईश्वर का भजन करते हैं वह भक्त अर्थार्थी कहलाते हैं ऐसे भक्त जो अपने कष्ट को दूर करने के लिए ईश्वर का भजन करते हैं स्मरण करते हैं प्रार्थना करते हैं उन्हें आर्त कहा जाता है ऐसे भक्त जो भगवान को जानने की चेष्टा करते हैं सदा उनका स्मरण करते हैं वह जिज्ञासु होते हैं और आखिर में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञानी भक्त का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि मुझे सबसे प्रिय ज्ञानी भक्ति जी लगते हैं भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 7 श्लोक 16 में भक्तों की प्रकार का वर्णन किया है।
उक्त बातें पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज के शिष्य प्रतिनिधि स्वामिश्रीः 1008 अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज के प्रथम नैष्ठिक शिष्य मुकुंदानंद ब्रह्मचारी जी ने कही।
उन्होंने सप्ताह श्रवण की विधि का वर्णन करते हुए कथा के अन्तराल में वक्ता एवं श्रोता द्वारा पालनीय नियमों का वर्णन किया ।प्रमुख रूप से स्वामी अभयानन्द तीर्थ (मौनी जी), केशवानन्द ब्रह्मचारी,आदि जन उपस्थित थे।
कथा का प्रारम्भ चिरंजीवी अनमोल के मंगलाचरण से हुआ। संचालन अभिषेक बहुगुणा जी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन ब्रह्मचारी विष्णुप्रियानन्द जी ने किया। श्रीमद्भागवत महापुराण की मंगलमयी आरती से कथा का विश्राम हुआ।