Reincarnation story एक उपाय से जानते हैं इंसान का अगला जन्म किस रूप में हुआ,

एक उपाय से जानते हैं इंसान का अगला जन्म किस रूप में हुआ
ब्यूरो रिपोर्ट
सदियों से ऋषि मुनि और वैज्ञानिक सब अपने-अपने विधि से पुनर्जन्म के बारे में अनुसंधान कर रहे हैं। मगर अभी भी पुनर्जन्म का रहस्य बरकरार है । इंसान के मृत्यु के बाद उसके प्राण कहां जाते हैं और उसके कर्मों के मुताबिक अगले जन्म में इंसान किस प्राणी के रूप में जन्म लेता है
मानव जीवन के साथ सदियों से चली आ रही कुछ परंपराएं हैं। उस उपाय से इंसान के पुनर्जन्म के बारे में जानकारी हासिल हो रही है।
आज आपको बताते हैं उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में आज भी इंसान की मृत्यु के बाद परिजन जान लेते हैं कि अगले अगला जन्म किस रूप में हुआ है।
इंसान का किस प्राणी के रूप में हुआ है जानने का उपाय
उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में लखनऊ से लेकर गोरखपुर बनारस से इलाहाबाद, से अयोध्या इन तमाम इलाकों में आज भी जब किसी इंसान के मृत्यु हो जाती है तो यहां के लोग एक उपाय करके अगला जन्म किस रूप में हुआ है उसको जान लेते हैं।
जब किसी इंसान की मृत्यु हो जाती है तुरंत परिजन या परिवार के मुखिया शव के सिर के पास उपले जला देते हैं उपले तब तक जलाना होता है जब तक शव का संस्कार नहीं हो जाता दरअसल उपले सिर्फ सुलगता है उसमें लौ निकलने की जरूरत नहीं होती ।यानी आग सिर्फ रहनी चाहिए । उपले में आग होने से धीरे-धीरे उपले राख में तब्दील होता रहता है आग भी बरकरार रहती है।
इसके बाद शव का संस्कार किया जाता है अगर इंसान की मृत्यु दोपहर के बाद हुई है अंतिम संस्कार करने में विलंब हो सकता है तो अगले दिन संस्कार किया जाता है या फिर परिवार के किसी मुखिया के आने का इंतजार हो तो भी शव को एक-दो दिन रखा जाता है । जब तक मुखिया नहीं आ जाते है। उपले जलाकर अंतिम संस्कार करने का इंतजार किया जाता है ।
इस तरह से कभी-कभी शव का एक या 2 दिन में अंतिम संस्कार होता है कभी 7 से 8 घंटे में हो जाता है कभी 5 घंटे में हो जाता है मगर शव के सिर के पास उपले जलाने की परंपरा हैं।
अंतिम संस्कार करने के बाद शोकाकुल परिवार में उस दिन किसी तरह का कोई क्रिया कर्म नहीं होता । उसके दूसरे दिन से क्रिया कर्म की शुरुआत होती है फिलहाल उपले की राख को फेंका नहीं जाता। उसे घर के लोग राख को बचा कर रख लेते हैं अन्तिम संस्कार के तीसरे दिन उपले की बची हुई राख को शाम के वक्त छलनी से छान दिया जाता है ।इसके बाद जब परिवार के सभी सदस्य भोजन कर लेते हैं तो रसोई या फिर घर के किसी सुरक्षित कमरे में रखा जाता है।
जो मुख्य उपाय है । राख को छलनी सेचौके पर छाना जाता है फिर चावल, उड़द की दाल एक गिलास में पानी रख कर सभी सामान को अच्छी तरीके से ढक दिया जाता है ।किसी बड़े बर्तन से ढकना होता है ताकि चौके की राख या रखे हुए सामान में कुछ गिर ना सके।यहां तक कि गांव में बड़े बर्तन से ढक दिया जाता हैंं ।
फिर 10 से 15 किलो के बाट को भी रख सकते हैं ताकि कोई भी कीड़ा मकोड़ा भी अंदर ना जा सके यह प्रक्रिया शाम के समय सबके भोजन करने के बाद होती है । पूरी रात उसी तरह से उसे छोड़ दिया जाएगा अगली सुबह घर परिवार और पास पड़ोस के लोगों की मौजूदगी में सबसे पहले खोला जाता है।
सुरक्षित तरीके से खोलना है ताकि चौका किसी तरह से हिलने ना पाए मान्यता ऐसी है की मृतक का किस रूप में जन्म हुआ है उसकी पैरों की छाप उस राख पर पड़ी रहती है ।जैसे मनुष्य का जन्म हुआ है तो छोटे -2 मनुष्य के पैर पड़े रहेंगे।
अगर जीव जंतु का हुआ है तो चिड़ियों के पंजे पड़े रहेंगे या अगर रहने वाले प्राणी का जन्म हुआ है तो उस राख पर रेंगने का निशान होगा। जिस प्राणी के रूप में मनुष्य का जन्म हुआ होगा उसके निशान उस राख पर पड़े रहेंगे।
ऐसी मान्यता है कि अगर मनुष्य ने बैकुंठ की प्राप्ति हुई है तो चावल उड़द या पानी वहां गिरा रहता है इससे यह पता चल जाता है कि मृतक का अगला जन्म किस रूप में हुआ है परंपरा आज भी विद्यमान है इससे लोग जान लेते हैं कि मृतक का अगला जन्म किस प्राणी के रूप में हुआ है।