Kolkata मातम

मातम
लफ्ज़ सारे किताबों में थे ,
सार तो ज़िन्दगी ने सिखाए….
दूर से ही समंदर देखे ,
डूब कर ही तैरना सीख पाए ।
ऊँगली थाम के जीते रहे ,
राह दिखा , तो भटक चले ।
लकीरों की हकीकत जान गए ,
यहाँ अपने भी साथ कहाँ चले ।
यूँ हंसते बीत गया सवेरा ,
दिन ढला, तो धुप को तरस गए ।
पत्थरों में जा कर ढूँढा खुदा ,
रूह के बेबसी से अनजान रहे ।
फूल खिले , तो तोड़ लिए ,
घर में बेटी देख, जी गए ।
मुस्कुराना हम तब सीखे ,
दर्द जब मरहम बन टपक पड़े ।
संवरना हम तब समझें ,
आईने जब हमारे टूट गए…
ज़नाज़ा जब उठा हमारा ,
तब जाकर ज़िन्दगी का मातम किए…
By नमिता