भगवान के चरित्र से शून्य ‘धर्माचरण’ भी संतोष कारक नहीं होता _ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द

भगवान के चरित्र से शून्य ‘धर्माचरण’ भी संतोष कारक नहीं होता _ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द
ब्यूरो रिपोर्ट
तोटकाचार्य गुफा, ज्योतिष्पीठ में चल रहे श्रीमद् भागवत प्रवचन के क्रम में आज महर्षि वेदव्यास के असंतोष की चर्चा करते हुए बताया गया कि वेदव्यास जी ने वेद का विभाग किया।
पुराणों की रचना की वेद के समस्त अर्थों को महाभारत के रूप में सरल करके सभी वर्णों के लिए सुलभ किया । फिर भी उन्हें आत्मिक प्रसन्नता नहीं हुई सरस्वती नदी के तट पर बैठकर चिंतन कर रहे वेदव्यास जी को नारद जी ने उपदेश देते हुए यह बताया कि जब तक तुम्हारी कृति में भगवल्लीला का वर्णन संपूर्णतया नहीं होगा तब तक आत्मसंतुष्टि की प्राप्ति नहीं होगी ।
अपनी समस्त कृतियों की परी समाप्ति भगवान के लीला कथा गान से ही होगी । आगे उन्होंने बताया प्राचीन काल में श्रुत परंपरा थी अपने यहां जिसके फलस्वरूप गुरु के एक बार उच्चारण करते ही उस विषय को शिष्य धारण कर लेता था । कालक्रम से बुद्धि के स्तर से नाश होता गया परिणामस्वरूप आज के समय में समस्त उपकरण उपलब्ध हैं फिर भी बुद्धि के क्षीण होने का स्तर निरंतर बढ़ता ही चला जा रहा है ।
आदि शंकराचार्य जी महाराज एकश्रुत थे एक बार सुनने के बाद ही वह कभी नहीं भूलते थे उस विषय को ।नारद जी की प्रेरणा से कलयुग के प्राणियों के कल्याण की दृष्टि से श्रीमद् भागवत जी के माध्यम से भगवान की लीला कथा का अनुवाद किया भगवान वेदव्यास ने ।चि अनमोल के मंगलाचरण से आरम्भ हुआ ब्रह्मचारी विष्णुप्रिया नंद ने धन्यवाद ज्ञापन किया और अमित तिवारी ने संचालन का कार्य संपन्न किया ।
सभा में क्षेत्र के बहुत सारे श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण की जिसमें मुख्य रुप से अधिवक्ता लीलानन्द डिमरी, आशीष उनियाल आदि उपस्थित रहे ।