संस्कार

संस्कार
दिन आज हसीं हैं…
चाय की सोंधी महक हैं
साथ में आलू के पराठे हैं
दूर मंत्रो का जाप हैं
होले से निखरती धुप हैं
रंगों में खिलतीं क्यारियां हैं…
कहीं पहाड़ो में, एक धुन तैरती हैं
सागर की गहराई,मोती से रिश्ते पलते
मेरे आँगन की तुलसी में ,
रोज़ विश्वास के फूल चढ़ते हैं..
संस्कार -रस्मो की छावँ तले
पवन ह्रदय की लौ जले
मेरे घर की छत पे ,
पतंगों की डोर कटती हैं..
मेरे शहर की नदी —
अविराम कलकल बहती हैं…
सावन के झूलों में —
रिश्ते खेलते बढ़ते हैं..
प्यार के आँगन तले ,
खुशियों के बेल पनपते हैं
ज़िन्दगी के कश्मकश में भी…
सुन्दर सुरमयी सपने सजते हैं…..
By नमिता