दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चिपको आंदोलन को पूरे हुए 50 साल, चिपको आंदोलन को लेकर हुई चर्चा

चिपको कार्यकर्ताओं ने मनाई चिपको की 50 वीं वर्षगांठ
सोहन सिंह चमोली साउथ एशिया 24 × 7
गोपेश्वर। चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर चिपको की मातृ संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मण्डल तथा सी. पी. भट्ट एवं पर्यावरण एवं विकास केंद्र के तत्वाधान में सर्वोदय केंद्र गोपेश्वर में “चिपको 50 साल और आगे की दिशा” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन कर वर्ष भर आंदोलन की स्वर्ण जयंती को धूम धाम से मनाने का निर्णय लिया गया। जिसके तहत विद्यालयों में वन एवं पर्यावरण संरक्षण विषय पर ब्याख्यान,एवं निबंध प्रतियोगिताऐं के साथ ही गोष्ठियों का आयोजन किय जाने का निर्णय लिया गया ।
बता दे कि 50 वर्ष पूर्व 01अप्रैल 1973 को सर्वोदय केंद्र गोपेश्वर में वनों को बचाने के लिए आयोजित रणनितिक बैठक में पेड़ों को बचाने के लिए लिये गये निर्णय अंग्वालठा मारने (चिपकना) से ही चिपको विचार अस्तित्व में आया।
गोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए चिपको प्रेणेता चण्डी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जहाँ एक दौर में समाज ने अपने सामूहिक प्रयासों से जंगल कटने से बचाये थे वहीं आज हमारे समक्ष वनाग्नि से धधकते जंगलो को बचाने की चुनौती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए युवाओं को आगे आना ही होगा। वन ही हमारे अस्तित्व के आधार है।
चिपको के दौरान के संस्मरणो को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि आज से ठीक 50 वर्ष पूर्व हिमालय के इस छोटे से कस्बे में आयोजित बैठक में वनों को बचाने के लिए निकले चिपको के संदेश ने न केवल राष्ट्रिय स्तर बल्कि अंतरास्ट्री य स्तर पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। जिसमें समाज के सभी वर्ग के लोगों के साथ ही खासकर महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह सभी के सामूहिक प्रयासों का प्रतिफल था कि हिमालय की इस उपत्यका से उठी आवाज ने सारे विश्व को गुंजायमान किया।
इस अवसर पर सी पी बीकि सी ई डी के प्रबंध न्यासी ओम प्रकाश भट्ट ने बताया की न्यास द्वारा अनवरत वन एवं पर्यावरण संवर्धन के लिए स्थानीय सहयोग से कार्य किए जा रहे है। उन्होंने बताया कि विकास केंद्र द्वारा चिपको की अब यही पुकार जंगल नहीं जलेंगे अबकी बार के संदेश के साथ वनों को आग से बचाने के लिए वनाग्नि की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में जन-जागरण के साथ ही स्थानीय स्तर पर जन सहभागिता बढ़ाने हेतु पदयात्राएं की गई।
इस दौरान थराली से आए पर्यावरण कार्यकर्ता रमेश थपलियाल ने कहा की चिपको आन्दोलन से बचाएंगे जंगलों कोवनाग्नि से बचाने के लिए प्रयास करने होंगे । इस अवसर पर गोपेश्वर के पूर्व पालिका अध्यक्ष प्रेम बल्लभ भट्ट ने कहा कि दशोली ग्राम स्वराज्य मण्डल चिपको आंदोलन की मात्र संस्था के साथ साथ देश व दुनिया को इस तरह के कई विचार किए हैं इसी तरह के कई विचार दिए जो कि आज के समय में भी प्रासंगिक हैं ।
चंद्रकला बिष्ट ने कहा कि वर्तमान समय में चिपको आंदोलन को पर्यावरण के परिपेक्ष में भी समझना होगा ।गोष्ठी में सुशीला सेमवाल, कलावती देवी,कुंती चौहान, मीना भट्ट,, सुमन देवी, भक्ति देवी, सुमन देवी, देवेश्वरी देवी,शांति प्रसाद भट्ट, जगदम्बा प्रसाद भट्ट,डॉ शिव चंद सिंह रावत, डॉ अरविंद भट्ट,हरीश भट्ट,वन क्षेत्राधिकारी, शोध हरीश नेगी, संजय पुरोहित,प्रधान माणा पीतांबर मोल्फा,वीरेंद्र बिष्ट,सुनील नाथन बिष्ट,आदि उपस्थित थे।
इस दौरान कार्यक्रम का संचालन विनय सेमवाल ने किया।चिपको आंदोलन के प्रेरणा चंडी प्रसाद भट्ट ने बताया कि 27मार्च 1973 को सर्वोदय केंद्र गोपेश्वर में पेड़ों को बचाने के लिए चिपको का विचार रखा गया।
01 अप्रैल 1973 को मंडघाटी के जंगलो को बचाने के लिए चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा पहली रणनीतिक बैठक का आयोजन। पेड़ों को बचाने के लिए उन पर अंग्वाल्ठा मारने ( चिपकने)का निर्णय।
24 अप्रैल 1973 को पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मंडल घाटी के गोंडी चिपको आंदोलन भारी जन आक्रोश को देखकर कंपनी के मजदूर जंगल से वापस लौटे। 20जून 1973 को फाटा में मैखंडा के जंगलो को बचाने के लिए चंडी प्रसाद भट्ट तथा आनंद सिंह बिष्ट द्वारा केदार सिंह रावत के सहयोग से स्थानीय ग्रामीणों के साथ चिपको की बैठक। 26 जून की बैठक में शंखध्वनि से वन की चौकीदारी का निर्णय।
25 दिसंबर 1973को फाटा में चिपको आंदोलन।
रेणी के जंगल को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की तैयारी हेतु जनवरी 1974 में चंडी प्रसाद भट्ट , गोविंद सिंह रावत,वासवानंद नौटियाल,तथा हयाद सिंह का रैणी भ्रमण एवं गाँवों में चिपको गोष्ठियाँ।
15मार्च 1973 को जोशीमठ में रेणी के जंगल की नीलामी के खिलाफ विशाल जन आक्रोश रैली।26 मार्च 1974 को रैनी के जंगल में कंपनी के मजदूरों से प्रत्यक्ष टकराव। गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने पेडों से चिपक कर उन्हें कटने से बचाया।09 मई 1974 को डॉ वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में सरकार द्वारा वनों के अध्यन के लिए एक कमेटी का गठन।
चिपको आंदोलन एवं आंदोलनकारी चिपको आंदोलन में दशोली ग्राम स्वराज्य मण्डल के साथ स्थानीय नेतृत्व एवं सहयोग।मण्डल घाटी- आलम सिंह बिष्ट्, बचनलाल, विजय दत्त शर्मा, कुर्मानंद डिमरी, बचन सिंह रावत,
रामपुर फाटा- केदार सिंह रावत, दयानंद, प्रयाग दत्त, प्रताप सिंह, गजाधर सेमवाल,
रैणी– गौरा देवी, गोविंद सिंह, वासवानंद, हयाद सिंह, शामिल रहे।