महा शक्तियों के बीच युद्ध: कौटिल्य नीति

महा शक्तियों के बीच युद्ध: कौटिल्य नीति
प्रोफेसर लल्लन प्रसाद
कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य नाम से अधिक लोग जानते हैं और जिन्होंने भ्रष्ट और एवं अत्याचारी नंद वंश का नाश किया, देश के छोटे बडे गणराज्यों को मिलाकर एक महान सम्राज्य की स्थापना की और चंद्रगुप्त मौर्य को इस देश का सम्राट बनाया, ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र, ( 320 ईसापुर्व) में राष्ट्रों के बीच युद्ध और शांति के बारे में जो सिद्धांत प्रतिपादित किए थे वे बहुत अंश तक आज भी प्रासंगिक हैं, शासकों के लिए पथ प्रदर्शक हैं। राजाओं, आज के अर्थ में राष्ट्राध्यक्षों- राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री को उन्होंने तीन श्रेणियों में बांटा है: बीजिगीषु (शक्तिशाली- ज्ञानबल, कोषबल एवं विक्रमबल से युक्त), मद्ध्यम और कमजोर। विजिगीषु न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा बल्कि उन्हें बढ़ाने में विश्वास रखता है, वह राष्ट्र को इतना संपन्न और शक्तिशाली बनाता है कि दुश्मन उस पर आंख उठाकर देखने का साहस न कर सके: ‘राजा आत्मद्रव्यप्रकृति संपन्नो नयस्याधिष्ठानं थाना विजिगीषु:।’ उसकी विजय यात्रा के आगे आने वाले राजाओं को उन्होने पांच श्रेणियों में विभाजित किया था: शत्रु, मित्र, अरिमित्र (दुश्मन का मित्र), मित्र -मित्र और अरिमित्र-मित्र ( दुश्मन के मित्र का मित्र)। पीछे के राजाओं को चार श्रेणी में बांटा था: पार्ष्णिग्राह (संकठ मे), आक्रंद (असहाय), पार्ष्णिणग्राहासार (अधिक्रित करने योग्य) एवं आक्रंदासार (कुछ सहायता प्राप्त)। इन राज्यों को मिलाकर राज मंडल (चक्र) बनता है।
ऐसे 12 मंडल एक के बाद एक हो सकते हैं । विजिगीषु राजा को चाहिए की राज मंडल रूपी चक्र में अपने मित्र राजाओं को नेमि (परिधि), पास के राजाओं को अरा (पहिए की गडारी और उस के मध्य भाग को मिलाने वाली तीली) और स्वयं को नाभि स्थान में समझे। जितने मित्र राजा होंगे उतनी ही ताकत बढ़ेगी जितने दुश्मन होंगे उतनी ही संघर्ष की संभावना बढेगी। दुश्मनों से निपटने के लिए राजा के पास 6 विकल्प होते हैं: संधि ( कुछ शर्तों के साथ मेल), विग्रह (शत्रु का अपकार), यान (चढाई करना), आसन (उपेक्षा करना), संश्रय (आत्मसमर्पण करना) एवं द्वैधीभाव (संधि-विग्रह दोनों से काम लेना)। राजा के निर्णय में प्रजा का सुख सर्वोपरि होना चाहिए ‘प्रजा हिते हितं राज्ञ:’। संधि तब करनी चाहिए जब दुश्मन अपने से प्रबल हो। यदि शत्रु बल और अपने बल में कोई अंतर ना हो तो आसन अपनाना चाहिए।
समान शक्ति के राजा के साथ दुश्मनी करने से दोनों ही का नाश होता है जैसे कच्चे घड़े आपस में भिड जाने से नष्ट हो जाते हैं। स्वयं को सर्व सम्पन्न एवं शक्तिशाली समझे तभी चढ़ाई करनी चाहिए। अपने को बहुत अशक्त समझने पर ही संश्रय से काम लेना चाहिए। यदि सहायता की अपेक्षा हो तो द्वैधीभाव अपनाना चाहिए। संधि और विग्रह में जब एक समान लाभ होता दिखाई पड़े तो अपने देश की उन्नति के लिए संधि का आलंबन करें क्योंकि विग्रह करने पर देश की संपत्ति का नाश होता है, प्रजा को कष्ट होता है। इसी प्रकार आसन और यान के द्वारा समान लाभ की स्थिति में आसन अपनाना ही श्रेयस्कर होता है। द्वैधीभाव और संशय के समान लाभ होने की स्थिति में द्वैधी भाव ग्रहण करना चाहिए।
यदि आश्रय की आवश्यकता हो तो अपने से बलवान मित्र राजा का आश्रय लेना चाहिए। युद्ध को कौटिल्य ने तीन श्रेणियों में बांटा है: प्रकाश युद्ध- जिसकी घोषणा किसी देश या समय को निश्चित करके की जाती है, कूट युद्ध- जो थोड़ी सी सेना को बहुत दिखा कर, भय पैदा करके, लूटपाट, शत्रु को पीड़ित करके, स्थान बदल बदल कर धावा बोलने बोलने जैसी रणनीति से की जाती है, एवं तूष्णी युद्ध- छल कपट से, विष देकर, गुप्त चरों के माध्यम से शत्रु देश मे अशांति पैदा करके की जाती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में यदि चाणक्य की रणनीति जिस का संक्षेप में ऊपर वर्णन किया गया है, देखी जाए तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन मे विजीगीषु (शक्तिशाली शासक) की झलक दिखाई पड़ती है। 30 वर्षों पूर्व सोवियत यूनियन के 13 टुकड़े हो गये थे। गोर्वाशेव उस समय राष्ट्रपति थे। अमेरिकी सी आई ए का जाल, रूस की कमजोर आर्थिक स्थिति, पेरेस्ट्रायिका, भ्रष्ट प्रशासन एवं भ्रमित नेत्रित्व ने यह स्थिति पैदा की। पुतिन का सपना रूस को फिर उसी ऊंचाई पर ले जाना है जहां वह 1990 के दशक के पहले था। 2014 में उन्होंने यूक्रेन पर हमला किया और और सीमा से लगे क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। यूक्रेन जब से नार्थ अटलांटिक ट्रीटी की सदस्यता के लिये कोशिश करने लगा रूस अपनी सीमा खतरे में देखकर सतर्क हो गया। पुतिन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को सबक सिखाने की ठान ली, यूक्रेन पर जबरदस्त हमला कर दिया।
50 दिनों से चला आ रहा भीषण युद्ध अभी निर्णायक स्थिति में नहीं है, और आगे चलते रहने की संभावना है। अमेरिका एवं यूरोप के देशों ने युक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी को हवा दी, उन्हें युद्ध में हर तरह की मदद का आश्वासन दिया, किंतु उनकी सहायता पैसे और हथियारों तक ही सीमित रखी, सैन्य सहायता किसी ने नहीं दिया। यूक्रेन को अपने बल पर लड़ने को छोड़ दिया। यूक्रेन के कई शहर तबाह हो चुके हैं आकाश चूमती अट्टालिकायें एवं खूबसूरत आशियाने राख में बदल गये हैं, सडके, गलियां लाशों से भर गयी हैं। 50 लाख से अधिक लोग घर द्वार छोड़कर पास के यूरोपीय देशों में शरण ले चुके हैं और बाकी भी भाग रहे हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की की नादानी नेटो ज्वाइन करने के निर्णय ने एक समृद्ध और खुशहाल देश को खंडहर में बदल दिया है, यूक्रेन युद्ध के आधुनिकतम खतरनाक हथियारों के इस्तेमाल की प्रयोगशाला बन दिया है जहां मनुष्य के जीवन की कोई कीमत नहीं रह गई है।