डिजिटल मीडिया और हिंदी पत्रकारिता प्रो. लल्लन प्रसाद

डिजिटल मीडिया और हिंदी पत्रकारिता
प्रो. लल्लन प्रसाद
मीडिया और पत्रकारिता मे मणिकांचन योग है। आदिकाल से मीडिया ज्ञान का संवाहक रही है, ऋषि मुनियों की वाणी श्रुति द्वारा हजारों साल जीवित रही। प्रिंट मीडिया आने के पहले पेड़ के पत्तों, छालों, वस्त्रों, ताम्रपत्रों, शिलाओं पर संदेश, लेख और ज्ञान विज्ञान की बातें लिखी जाती रहीं। प्रिंटिंग के आविष्कार के बाद समाचार पत्र-पत्रिकाएं महत्वपूर्ण संचार संवाहक बनी। उसके बाद हुआ आगमन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का। रेडियो और टेलीविजन सशक्त मीडिया के रूप में समाचारों और विचारों के संवाहक बने। इस क्रम में डिजिटलाइजेशन आधुनिकतम संचार संवाहक का रूप ले रही है। एक उंगली का क्लिक, ज्ञान का भंडार सामने, जिसकी परिकल्पना पहले कभी नहीं की गई। आशंका इस बात की भी जताई जाने लगी है कि कुछ वर्षों में पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी क्योंकि सारा ज्ञान विज्ञान छोटे छोटे चिप्स में स्टोर हो रहा है। जयद्यपि यह निर्मूल है, संचार के सभी साधन नए और पुराने साथ साथ चलते रहे हैं और आगे भी चलेंगे।
डिजिटलाइजेशन का फलक बहुत व्यापक हो चुका है इसमें संदेह नहीं, आधुनिक पत्रकारिता भी उसकी बाहों में आती जा रही है। पत्रकारिता समाचारों और विचारों को मीडिया के माध्यम से जन जन तक ले जाती है। साहित्यिक पत्रकारिता विषय की गहराई तक जाती है, सच्चाई सामने लाती है विषय को रोचक बनाती है, अपनी सोच विचार और विश्लेषण से ज्ञान वर्धन करती है और पाठकों को सोचने और प्रतिक्रिया देने का अवसर भी प्रदान करती है। पत्रकार चाहे संपादकीय लिखता है या कालम, फीचर लिखता है या घटना का विश्लेषण करता है, पाठक को सच्चाई से अवगत कराना और भ्रमित होने से बचाना उसकी जिम्मेदारी है। मीडिया उसके लिए साधन है साध्य नही, वह चाहे प्रिंट हो या डिजिटल।
प्रिंटिंग आधुनिक युग के आविष्कारों में से एक है। पहला प्रिंटिंग प्रेस हॉलैंड में 1430 में स्थापित हुआ, भारत में 1556 में गोवा राज्य में। पहले हिंदी समाचार पत्र उदित मार्तंड का प्रकाशन 1826 में कोलकता से हुआ। और भी कई पत्र-पत्रिकाऐं बंगाल से प्रकाशित होनी शुरू हुई, भारतीय पत्रकारिता की वैचारिक पृष्ठभूमि भी वहीं से बननी शुरू हुई, ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के विरुद्ध समाचार पत्रों ने आवाज उठानी शुरू की। साहित्यिक पत्रिका का उद्भव भारतेंदु युग (1850-85) में हरिश्चंद्र मैगजीन (1873) से माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद द्वारा संपादित हंस साहित्यिक पत्रकारिता की मील का पत्थर साबित हुआ। हिंदी के अधिकांश लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार साहित्यकार भी थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी जिन्हें आधुनिक हिंदी पत्रकारिता का जनक भी कहा जाता है प्रिय प्रवास, यशोधरा, मिलन, साकेत जैसे ग्रंथों के रचनाकार थे, भाषा, भाव और विषय सभी द्रिष्टिकोण से उनका योगदान अमूल्य रहा है। राजनीति में यह समय दादा भाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक, और गोपाल कृष्ण गोखले का युग था। द्विवेदी जी ने सरस्वती के संपादन से पत्रकारिता जगत में पांव रखा और इसे ऊंचाई तक पहुंचाया। उनकी भाषा, सरल, सुगम और रोचक होती थी। उनका उद्देश्य था एक सजग पाठक वर्ग का निर्माण करना जो स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाए, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक विषयों में रूचि ले, समझे। द्विवेदी जी की तरह माखनलाल चतुर्वेदी जी भी प्रतिष्ठित साहित्यकार थे।
उन्होंने प्रभा नाम की पत्रिका निकाली, प्रताप और कर्मवीर के भी संपादक रहे। हिंदी भाषा के प्रसार के लिए उन्होंने जो काम किया स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। राजनीति में यह महात्मा गांधी के उदय का समय था। एक ओजस्वी कवि और पत्रकार के रूप में 56 वर्ष चतुर्वेदी जी ने देश की स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व देने वाली दो महान विभूतियां महात्मा गांधी और महामना पंडित मदन मोहन मालवीय पत्रकार भी थे। गांधी जी हिंदी को राष्ट्रभाषा और भारत की सभी भाषाओं को राज्यों की भाषाएं बनाने एवं अंग्रेजी के ऊपर रखने के पक्षधर थे यंग इंडिया 1 जून 1921 के अंक में गांधी जी ने लिखा था ‘मैं नहीं चाहता कि मेरा घर सब तरफ खड़ी हुई दीवारों से घिरा रहे, मैं भी यही चाहता हूं कि मेरे घर के आस-पास देश-विदेश की संस्कृति की हवा बहती रहे, पर मैं यह नहीं चाहता उस हवा के कारण जमीन पर से मेरे पर उखड़ जाए और मैं औंधे मुंह गिर पड़ू।
मैं दूसरों के घरों में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्ति भिखारी या गुलाम की हैसियत से रहने के लिए तैयार नहीं, झूठे घमंड वश होकर या तथाकथित सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए अपने देश की बहनों पर अंग्रेजी विद्या का नाहक बोझ डालने से इनकार करता हूं। मुझे यह नहीं बर्दाश्त होगा हिंदुस्तान का एक भी आदमी अपनी मातृभाषा को भूल जाए, उसकी हंसी उडाए, उससे शर्माए या उसे ऐसा लगे कि वह अपने अच्छे से अच्छे विचार अपनी भाषा में नहीं रख सकता।’ हरिजन में गांधी जी के लेख सैकड़ों वर्षों से शोषित दलित समाज को उठाने की सामाजिक क्रांति में महान प्रेरणा स्रोत थे। महामना मालवीय एक महान राजनेता एवं शिक्षा विद ही नहीं थे, एक ओजस्वी पत्रकार भी थे। उन्होंने हिंदुस्थान, अभ्युदय, मर्यादा, सनातन धर्म आदि पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
उत्तरदायित्व के प्रति 1922 में लाहौर में दिया गया उनका भाषण स्मरणीय है: ‘पत्रकार लोग भी नई रोशनी के पंडित और मौलाना है। वे ईश्वर, मुल्क तथा कौम के लिए लोगों की भलाई का रास्ता बतलाने वाले हैं। अखबारों में एक गलत खबर छपने से कितना बुरा असर होता है? पत्रकारों से मेरी प्रार्थना है कि ऐसी कोई बात छपने में ना आए जिससे लोगों के दिलों में किसी प्रकार का बुरा भाव पैदा हो, किसी तरह की अत्युक्ति हो, जो कुछ लिखें सच्चाई से जांच पड़ताल करके लिखें और ऐसे शिक्षाप्रद शब्दों में लिखें जिनका असर देश की एकता मे सहायक हो।’ आज कितने पत्रकार इस पत्रकारिता धर्म का पालन करते हैं?
आजादी के बाद के वर्षों में अनेक पत्रकारों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं देश के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनमें एक अविस्मरणीय नाम धर्मवीर भारती का है। धर्म युग के संपादक के रूप में उन्होंने पत्रकारिता जगत में एक क्रांति लाई। उनके लिए कहा गया है कि ‘वे पाठकों को गढते थे, उसे तैयार करते थे, ताकि वे अधिक जागरूकता के साथ अपने समय की रचनाओं, घटनाओं और जिज्ञासाओं को भलीभांति समझ सकें, और सत्ता व्यवस्था के समक्ष कुछ जरूरी प्रश्न उठा सकें।’ टेलीविजन की लोकप्रियता ने टीवी पत्रकारिता को जन्म दिया दृश्य श्रव्य का संगम हुआ पत्रकारों के लिए नए अवसर आए और साथ में नई चुनौतियां भी।
इंटरनेट पर पोस्ट की जाने वाली पत्रकारिता सामग्री को डिजिटल पत्रकारिता की संख्या दी गई है। विश्व की बड़ी आबादी आज इंटरनेट यूजर है, भारत में 50 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट यूजर हो चुके हैं। मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से देश दुनियां की घटनाओं की पल-पल की जानकारी, अच्छे बुरे समाचार, विचार, विश्लेषण, विभिन्न विषयों के ज्ञानवर्धक साहित्य, सुंदर भी अश्लील भी चित्र, वीडियो, संवाद, मनोरंजन के उपायदान, आधुनिकतम आविष्कार, युद्ध, शांति, अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक और सामाजिक हलचल, सभी उम्र और सभी वर्ग के लोगों के दर्शनीय पठनीय अच्छी बुरी सामग्री 24 घंटे इंटरनेट पर उपलब्ध है। न कोई समय की सीमा है न स्थान की। अधिकांश न्यूज़ पेपर और पत्रिकाएं अपने प्रिंटेड एडिशन इंटरनेट पर लाने को मजबूर है। बाजार व्यवस्था की तरह पत्रकारिता भी प्रतिस्पर्धा के युग में आ गई है। अपने पाठक बनाए रखना, नए पाठक बनाना पत्रकारिता के लिए नई चुनौती भी है साथ ही साथ अवसर भी। फील्ड और स्पॉट रिपोर्टिंग का महत्व बढ़ रहा है, सेक्सी पोज’ बेडरूम सीक्रेट, रहस्यमई घटनाएं और इलेक्ट्रॉनिक गेम्स अधिक देखे जा रहे हैं, समाज के लिए उपयोगी साहित्य और समाचार देखने वालों की संख्या कम है। ऐसे में पत्रकारों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
वर्षों पूर्व महादेवी वर्मा ने पत्रकारिता के बारे में जो कहा था वह आज भी सच है- ‘पत्रकारिता एक रचना शैली है, इसके बगैर समाज को बदलना असंभव सी बात है, अतः पत्रकारों को अपने दायित्व और कर्तव्य का निर्वाह निष्ठा पूर्वक करना चाहिए, क्योंकि उन्हीं के पैरों के छालों से इतिहास लिखा जाएगा।’