रक्षा उत्पादन एवं निर्यात में वृद्धि के अच्छे संकेत
1 min readरक्षा उत्पादन एवं निर्यात में वृद्धि के अच्छे संकेत
प्रो लल्लन प्रसाद
रक्षा संयंत्रों, उपकरणों एवं प्रणाली का उत्पादन देश मे पहली बार ₹1लाख करोड से अधिक का हुआ, पिछले 1 वर्ष में 12% की वृद्धि हुई, पिछले 5 वर्षों में 100% की। 2017-18 में रक्षा उत्पादों की कुल कीमत ₹54251 करोड़ थी, 2022-23 मे ₹106800 करोड पर पहुंच गयी। मेक इन इंडिया की यह बड़ी सफलता मानी जारही है। 2024-25 तक इसे ₹175000 करोड के ऊपर ले जाने का लक्ष्य है। यद्यपि भारत अभी भी रक्षा सामग्रियों का विश्व के बड़े आयातक देशों में है, उत्पादन के क्षेत्र में यह सफलता दूसरे देशों पर उसकी निर्भरता को कम करने में सहायक होगी इसमें संदेह नही। पिछले कुछ वर्षों में आयात में 11% की कमी हुई है। रक्षा उत्पादन में वृद्धि के लिए सरकार द्वारा मेक इन इंडिया के अंतर्गत ठोस कदम उठाए गए हैं। बहुत से संयंत्रों, पार्ट्स, उपकरणों का आयात चरणबद्ध तरीके से बन्द किय जा रहा है जो देश में बन सकते हैं। जिन आधुनिक संयंत्रों का उत्पादन शुरू हो चुका है उनमें तेजस, लाइट कम्बैट एयरक्राफ्ट, विभिन्न प्रकार के हेलीकॉप्टर, युद्धपोत, टैंक, आर्टिलरी गन, मिसाइल, राकेट और सेना के वाहन आदि सम्मिलित हैं । ऐसी 4 सूचियां प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें हजारों वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। चौथी सूची जो हाल ही में प्रकाशित हुई है उसके अंतर्गत जिन वस्तुओं के आयात पर दिसंबर 2023 से दिसंबर 2025 के बीच प्रतिबंध लगाया जाएगा उनसे ₹ 715 करोड के आयात में बचत होगी। जिन वस्तुओं के आयात पर इन सूचियों में प्रतिबंध लगाया गया है उनमें फाइटर जेट, युद्धपोत, हेलीकॉप्टर, आर्टिलरी गन, विभिन्न प्रकार के एम्युनशन्स, हल्के वजन के टैंक, जल सेना के हेलीकॉप्टर, मिसाइल्स, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, लाइट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल, बेसिक ट्रेनर एयरक्राफ्ट, अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम, मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर आदि शामिल हैं।
रक्षा उत्पादन क्षेत्र में स्वदेशी करण की प्रक्रिया पिछले 3 दशकों से चल रही है, 1983 में तत्कालीन सरकार ने 5 मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने के लिए एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम को मंजूरी दी जिसके अंतर्गत पृथ्वी (सतह से सतह), आकाश (सतह से हवा), त्रिशूल (पृथ्वी का नौसेना संस्करण), नाग (एंटी टैंक), एवं अग्नि (बैलिस्टिक मिसाइल शामिल) थे। दुश्मन के हवाई हमलो से बचाने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली है। देश में निर्मित बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेक्टर लंबी दूरी तक दुश्मन की मिसाइलों और एयरक्राफ्ट मार गिराने में सक्षम हैं। रक्षा क्षेत्र में कुछ और उल्लेखनीय उत्पादों में आई एन एस विक्रांत कैरियर, धनुष (लंबी दूरी की तोपें), अरिहंत (परमाणु पनडुब्बी) प्रचंड (हल्के हेलीकॉप्टर) आदि शामिल हैं। बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम का पहला चरण 2020 में पूरा हुआ, इनके विकास और उत्पादन में भारत विश्व में चौथे स्थान पर आ गया है, अमेरिका रूस और चीन अभी उससे आगे हैं।
स्वदेशी कंपनियों द्वारा रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने उनसे सीधे खरीद के लिए बजट में विशेष व्यवस्था की है। इस वर्ष के बजट में इसके लिए एक लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। छोटे और मध्यम उद्योगों को इस क्षेत्र में लाने के लिए पिछले सात-आठ वर्षों में जो लाइसेंस दिए गए हैं उनमें 200% की वृद्धि हुई है। सप्लाई श्रृंखला में स्टार्टअप्स को भी शामिल कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश एवं तमिलनाडु में रक्षा गलियारे बनाए जा रहे हैं। इनसे रक्षा उत्पाद इकोसिस्टम सुद्रिढ होगा, साथ ही साथ नए रोजगार के अवसर बढेंगे। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड का कॉरपोरेटाइजेशन किया गया है। इस बोर्ड के अंतर्गत रक्षा उत्पाद के 41 कारखाने थे जो एम्युनिशन, एक्सप्लोजिव्स, वाहन, औजार, ट्रूप कंफर्ट आइटम्स, ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक्स गियर, पैराशूट, और एन सिलरी प्रोडक्ट्स बनाते थे, उनको 2021 मे सात नयी कंपनियों के अंतर्गत ला दिया गया है: एडवांस्ड वेपन एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड, ट्रूप कंफर्ट इंडिया लिमिटेड, आप्टेल लिमिटेड, म्युनिशंस इंडिया लिमिटेड, अवानी आर्मर्ड व्हीकल्स, ग्लाइडर इंडिया लिमिटेड, एवं यंत्र इंडिया लिमिटेड। रक्षा उत्पादन में सीधा विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए निवेश की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है, व्यापार करने की प्रक्रिया का भी सरलीकरण किया गया है।
वर्षों से भारत रक्षा उत्पाद के बड़े आयातकों में रहा है किंतु अब स्थिति बदल रही है, भारत से निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। 2013-14 से 2022-23 के बीच रक्षा उत्पादों के निर्यात में 23% की वृद्धि हुई, ₹686 करोड़ से बढ़कर ₹16000 करोड़ पर निर्यात पहुंचा। इस बीच दूसरे देशों से आयात 46% से गिरकर 36.7% पर आ गया । निर्यात में यह वृद्धि भारत की रक्षा उत्पाद की वैश्विक स्तर मे बढ़ती भागीदारी का भी प्रतीक है, यद्यपि भारत अभी इस क्षेत्र मे निर्यात करने वाले देशों में 24 वें पायदान तक ही पहुंच पाया है। देश की लगभग 100 कंपनियां रक्षा उत्पादों के निर्यात व्यापार में हैं, 85 देशों को निर्यात हो रहा है जिनमें इटली, फ्रांस, पोलैंड, स्पेन, रूस, श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस, नेपाल, भूटान, मायनामार, मिस्र, आर्मेनिया, इजरायल, यू ए ई, सऊदी अरब, इथोपिया, फिलीपींस, आदि शामिल हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियां: हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विश्व की रक्षा संयंत्रों के निर्यातकों में क्रमशः 42 वें एवं 63 वें स्थान पर हैं। जिन रक्षा संयंत्रों और उपकरणों का निर्यात हो रहा है उनमें कुछ प्रमुख हैं: डॉर्नियर 228, 155 एम एम एडवांस टोल आर्टलरी गन्स, ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल, सर्वेलियंस सिस्टम्स, राडार, सिमुलेटर्स, माइन प्रोटेक्टेड वेहिकल्स, आर्मर्ड वेहिकल्स, पिनाका रॉकेट्स एवं लांचर्स, एम्युनिशन्स, थर्मल इमेजेज, बॉडी आर्मर्स, पार्ट्स एवं कॉम्पोनेंट्स आदि। तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर्स एवं और एयरक्राफ्ट कैरियर्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। रक्षा निर्यात का लक्ष्य 2025 तक ₹35000 करोड प्रतिवर्ष का है जो अभी पूरा होता नहीं दिखता।
रक्षा उत्पादों के निर्यात में विगत कुछ वर्षों में तेजी आई है किंतु अभी भी विकसित देशों की अपेक्षा भारत बहुत पीछे है। ब्रह्मोस और आकाश जैसी मिसाइल प्राणियों का विकास जिस तेजी से हुआ है उनका व्यावसायिक सफलता में रूपांतरण उस तेजी से नहीं हो पा रहा है। रक्षा उत्पादों के उन्नत देशों: अमेरिका, रूस, इसराइल आदि की तुलना में भारत के उत्पाद कम गुणवत्ता पूर्ण और उच्च लागत के माने जाते हैं। बड़े पैमाने पर निर्यात अभी कुछ देशों और उत्पादकों तक ही सीमित है। यद्यपि सरकार ने विदेश व्यापार प्रक्रिया के सरलीकरण के लिए समय-समय पर कदम उठाए हैं किंतु लालफीताशाही अभी समाप्त नहीं हुई है। रक्षा उत्पादन एवं निर्यात में विश्वव्यापी प्रतिस्पर्धा है इसको देखते हुए इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास(आर एंड डी) पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी आर डी ओ) का कार्यक्षेत्र और बजट बढ़ाया जाना चाहिए।