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पेड़ काटने का रो रहा विरोध,पेड़ो की होती है पूजा

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पेड़ काटने का रो रहा विरोध,पेड़ो की होती है पूजा

रिपोर्ट ललित बिष्ट
अल्मोड़ा

उत्तराखंड में वर्षो से अनेकों लोग जल जमीन और जंगलों को बचाने की मुहिम चलाए हुए।

उसी का नतीजा है कि आज तक उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य को वन तस्करो की नज़रो से बचाया गया है।किंतु अब जागेश्वर धाम को जाने वाली सड़क के चौड़ीकरण का कार्य प्रस्तावित है। चौड़ीकरण में आरतोली से जागेश्वर धाम तक 3 किलोमीटर के दायरे में स्थित दारूका वन क्षेत्र के हजारों साल पुराने लगभग 1000 देवदार के वृक्षों के कटान क्षेत्र को चिन्हित करने के मामले में अब जमकर स्थानीय लोगों का विरोध देखने को मिल रहा है।

जिसमें अल्मोड़ा जनपद के अलग अलग जगहों से सामाजिक संस्थाएं और पर्यावरण प्रेमी अब चिपको आंदोलन की तर्ज पर पेड़ो को बचाने के लिए जागेश्वर आने लगे है।

उन्ही में से एक टीम चौखुटिया ब्लॉक से भी जागेश्वर पहुंच गई है। जिसमें हिमगिरि ग्रीन फाउंडेशन से जुड़े हुए युवाओं ने जंगल को बचाने को कमर कस ली है।उनका कहना है कि
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जितने पेड़ बताए जा रहे है वास्तव में उससे कहीं अधिक पेड़ काटने की तैयारी चल रही है।
विरोध किया जा रहा है

वहीं मंदिर के पुजारीयो से बात करने के बाद स्पष्ट हुआ कि दारूका वन से लकड़ी उठना भी अपराध के समान है और उन वनों को उन पेड़ों को आज तक उन लोगों ने छुआ तक नहीं है वे उनको देवता के रूप में पूजते हैं लेकिन उन्ही देवताओं को काटने की तैयारी चल रही है उन पर घाव कर दिए गए हैं।

 

अगर दारूका वन की बात करें तो दारूका वन मतलब देवदार का वन देवदार मतलब देव रूपी वन और इन देवदार के वनों में अनेक ऐसे पेड़ हैं जिन्हें पांडव रूप में पूजा जा रहा है जिन्हें त्रिदेव रूप में पूजा जा रहा है जिन्हें अर्धनारीश्वर रूप में पूजा जा रहा है

।अलग-अलग पेड़ों को अलग-अलग देव के रूप में पूजा जा रही है और इन्हीं पेड़ों पर निशान लगा दिए गए हैं और इसके दौरान कई छोटे-छोटे मंदिर भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

स्थानीय लोगों का स्पष्ट कहना है कि यातायात के लिए सड़क पर्याप्त चौड़ी है।

 

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