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चुनौतियों के बीच आगे बढ़ती भारतीय आर्थिकी

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चुनौतियों के बीच आगे बढ़ती भारतीय आर्थिकी
प्रो. लल्लन प्रसाद

वैश्विक चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था न केवल स्थिर है बल्कि आगे बढ़ रही है, विश्व की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है। हाल ही में एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने इसकी सॉवरेन रेटिंग (संप्रभुता मूल्यांकन) बीबीबी- से बीबीबी कर दिया है। तेजी से विकास, मजबूत नीतियां, अच्छी क्रेडिट साख और कीमतों पर नियंत्रण इसका कारण बताया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारतीय आर्थिकी के विकास दर के अनुमान को 6.2% से बढाकर 6.4% कर दिया है। जापान को पीछे छोड़कर भारत की अर्थव्यवस्था 2025 में पांचवे से चौथे स्थान पर आ चुकी है, 2028 तक जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरे स्थान पर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही। 2038 तक 34.2 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत के विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने का अनुमान अर्नेस्ट एंड यंग का है। स्विच और मूडी रेटिंग एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था की पहले से चली आ रही रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है। वैश्विक मुद्रा के भंडार में 695 अरब डॉलर के साथ भारत विश्व के पांच बड़े देशों में शामिल है, विदेशी निवेशकों की वह पहली पसंद है। बहुत सी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चीन से अपना व्यापार घटाकर भारत की ओर रुख कर रही हैं, भारत विश्व का सबसे बड़ा मोबाइल मैन्युफैक्चर बन चुका है। भारत का अपना उपभोक्ता बाजार विश्व का सबसे बड़ा बाजार होने जा रहा है। भारत की आर्थिकी स्वदेशोन्मुख है, बाहरी देशों पर उसकी निर्भरता बहुत अधिक नहीं है। भारत का राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज विश्व के 10 बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में गिना जाता है, जिसकी ब्रांड कीमत 526 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में इस समय भारत का योगदान लगभग 20% है। इसके बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मृत बताया है जिसका समर्थन देश के विपक्ष के नेता ने भी खुलेआम किया है जो राष्ट्र को नीचा दिखाने का प्रयास है, शर्मनाक है।

पश्चिम एशिया और यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे युद्ध के कारण वैश्विक सप्लाई श्रृंखला पहले से ही बाधित है जिसका प्रभाव आयात-निर्यात पर पड़ रहा है। माल की ढुलाई और बीमा के खर्चे बढ़ गए हैं, सामान दूसरे देशों से आने और जाने में समय अधिक लग रहा है, मांग में भी कमी आ गई है जिससे उत्पादन और व्यापार में बाधा उत्पन्न हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया है जो भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार है, ब्राजील को छोड़कर और किसी देश पर इतना टैरिफ नहीं लगाया गया है। भारत रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीदता है और वैश्विक बाजार में रिफाइन करके बेचता है। ट्रंप का मानना है कि इससे भारत बहुत मुनाफा कमाता है। सच तो यह है कि चीन, यूरोपीय यूनियन और स्वयं अमेरिका भी रुस से ऊर्जा का आयात करते है। ट्रंप यह भी चाहते हैं कि भारत अमेरिका के कृषि, डेयरी, सी फूड पदार्थों को भारत में बिना टैरिफ के बेचे जाने की इजाजत दे, जो भारत को मंजूर नहीं है क्योंकि इससे यहां के करोड़ों किसानों, ग्वालो और मछुआरों की रोजी-रोटी पर असर पड़ेगा। भारत की जीडीपी पर लम्बी अवधि मे अमेरिका का भारी टैरिफ मात्र 0.1% असर डाल सकती है, थोड़े समय के लिए इसके कारण कुछ बेरोजगारी और उद्योगों के उत्पादन में कमी और मंदी की स्थिति आने की संभावना है, किंतु भारत उसके लिए तैयार है। टैक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, फार्मास्युटिकल्स, आटोपार्ट्स, मशीनरी उपकरण, कृषि पदार्थ, प्रासेस्ड फूड, धातु, कार्बन रसायन, हस्तकला आदि उद्योग टैरिफ की मार से प्रभावित होंगे। संप्रभुता संपन्न स्वाभिमानी भारत अमेरिका की दादागिरी के आगे घुटने नहीं टेक सकता यह बात हमारे प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से अमेरिका को बता दिया है। अभी तक भारत अमेरिका से जितना आयात करता है उससे कहीं अधिक माल और सेवाएं उसको निर्यात करता है, भारत का अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) अमेरिका के साथ लगभग 48 अरब डॉलर का है जिसका 70% प्रभावित होने का अनुमान है। भारत निर्यात के नए बाजार खोज रहा है, कई देशों के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते के प्रयास कर रहा है जिसमें सफलता मिल रही है। ब्रिटेन के साथ महत्वपूर्ण समझौता संपन्न हुआ है जो भारतीय उद्योगों के लिए बड़ी राहत साबित होगा। बहुत सी वस्तुएं जिस पर 90% तक टैरिफ लगता था अब मात्र 10% रह गया है। यूएई के साथ भी भारत का जो व्यापार जो समझौता हुआ है उससे दोनों देशों के बीच तेजी से व्यापार बढ़ेगा। 20 से अधिक देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बात चल रही है जिसमें यूरोपियन यूनियन के कई देश, दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के देश शामिल है

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