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Big news जुलाई में दुनिया का सबसे आबादी वाला देश बन जाएगा भारत, आर्थिक चुनौती व समाधान

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बढ़ती आबादी: अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती

प्रो लल्लन प्रसाद

प्रो लल्लन प्रसाद साउथ एशिया 24 * 7 के वरिष्ठ स्तंभकार है यह उनके निजी विचार हैं

धरती की 8 अरब आबादी में हर छठा व्यक्ति भारतीय है। संयुक्त राष्ट्र संघ की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 2023 मे भारत की आबादी चीन से अधिक हो जाएगी।पहली बार भारत सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा।

जुलाई 2023 तक भारत दुनिया का सबसे आबादी वाला बन जाएगा देश

1947 में जब भारत आजाद हुआ उसकी कुल आबादी 34 करोड़ थी जो 4 गुना बढ़कर 142 करोड हो गई है। औसतन प्रति वर्ष आबादी में डेढ़ करोड़ की वृद्धि हुई है जो विश्व में सर्वाधिक है। वर्तमान मे प्रति स्त्री बच्चे जनने का औसत 2.3 है, इस आधार पर 2050 तक भारत की आबादी 180 करोड हो जाएगी। यदि बच्चे जनने की दर परिवार नियोजन द्वारा कमी करके 1.8 पर लाया जा सके तो 2060 तक भारत की आबादी 170 करोड़ होगी और इस शताब्दी के अंत में उसमें कमी आ सकती है।

बढ़ती आबादी देश के लिए चुनौती और समाधान

150 करोड़ रह जाएगी। देश की कुल आबादी में बच्चों और नौजवानों की संख्या बड़ी है, लगभग 43% आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की लोगों की है। 7% लोग 64 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। महिलाओं की औसत उम्र 74 वर्ष और पुरुषों की 71 वर्ष है। 35% लोग देश के बड़े शहरों में रहते हैं बाकी गांवों और छोटे शहरों में बढ़ती आबादी वरदान है या अभिशाप यह चर्चा का विषय बना हुआ है।

 

जो लोग मानते हैं की बढ़ती आबादी देश के हित में है उनके अनुसार अर्थ अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक श्रम बल की पूर्ति होती रहेगी, वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी, निवेश बढ़ेगा, आय के साधन बढेंगे, उत्पादन में वृद्धि होगी, स्वदेशी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढोतरी होगी, रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे और खुशहाली आयेगी। अधिकांश पश्चिमी देशों की आबादी कम होती जा रही है जिससे उनका अपना बाजार सिकुड़ता जा रहा है।

एशिया और अफ्रीका  में बढ़ती आबादी दुनिया के लिए चुनौती

एशिया और अफ्रीका के आबादी बहुल देशों में निवेश करने, कल कारखाने लगाने और व्यापार बढ़ाने मे उनका अपना हित भी है। जिन लोगों का मानना है कि बढ़ती आबादी देश के लिए हितकर नहीं है और उस पर नियंत्रण होना चाहिए उनके अनुसार यद्यपि भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुकी है फिर भी वह विकसित देशों की श्रेणी में अभी नहीं है। 2021 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 190 देशों में 122 वें स्थान पर था। जनसंख्या में तेजी से वृद्धि इसका मुख्य कारण रही है। देश में बेरोजगारी की दर 7.6% के लगभग है जो विश्व की औसत बेरोजगारी 5.4% के ऊपर है।

रोजगार का सृजन दुनिया के सभी देशों के लिए है बड़ी चुनौती

बेरोजगारी की दर कोविद पीरियड में 12% तक चली गई थी। गांव की अपेक्षा शहरों में बेरोजगारी की दर अधिक है। बढ़ती बेरोजगारी प्राकृतिक संसाधनों पर दिनोंदिन बोझ बढ़ाती जा रही है। विश्व की कुल आबादी का 16% भारत में निवास करता है जबकि उसकी भूमि विश्व की मात्र 2.4% है।

भारत पहले से ही आबादी बहुल देश है, आबादी में तेजी से वृद्धि अर्थव्यवस्था मे विकास की गति विश्व में सबसे तेज होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आमदनी उतना नहीं बढ़ा सकती जो कम आबादी में संभव है। प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से भारत से ऊपर आर्थिक शक्तियां: संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी भारत से बहुत आगे हैं। देश की सकल आय का स्वास्थ्य और शिक्षा पर जो खर्च होता है ।

वह विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत का स्वास्थ्य बजट विश्व के सबसे कम बजटों में चौथे स्थान पर है। सरकार बजट का मात्र 4% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है जबकि विकसित देशों मे स्वास्थ्य सेवाओं पर औसत खर्च 18% के ऊपर है। स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च की दृष्टि से विश्व में भारत 155 वे स्थान पर है।

पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चों मे वृद्धि हुई है। नेशनल हेल्थ मिशन का 2023-24 का बजट 29085 करोड रुपए एवं प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का 7200 करोड रुपए का है। किंतु देश की आधी आबादी अभी भी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। शिक्षा पर होने वाला खर्च भी विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है, बजट का मात्र 2.9% शिक्षा पर खर्च होता है। 2023-24 के बजट में शिक्षा के लिए 112899 करोड रुपए का प्रावधान है जो पिछले वर्ष की अपेक्षा मात्र 8622 करोड़ रुपए अधिक है।

बुनियादी ढांचे के विकास पर देना होगा सबसे ज्यादा जोर

प्राइमरी स्कूलों की संख्या देश में कम हुई है जबकि सेकेंडरी स्कूल, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हुई है। नए विश्वविद्यालय अधिकांश निजी क्षेत्र में खुल रहे हैं। विश्व स्तर के आईआई टीज, आई आई एम्स और एम्स मे सीटें सीमित है, लाखों होनहार छात्र और छात्राएं दाखिले से वंचित रह जाते हैं। विश्व गुरु बनने के लिए शिक्षा प्रसार एवं गुणवत्ता में तेजी से वृद्धि आवश्यक है। बढ़ती आबादी के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने हेतु कौशल शिक्षा का विकास भी तेजी से आवश्यक है।

 

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