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Askot arakot Yatra पहाड़ की पीड़ा को दर्शाती अस्कोट आराकोट अभियान

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Askort arakot Yatra पहाड़ की पीड़ा को दर्शाती अस्कोट आराकोट अभियान

By sohan Singh

Askote arakot abhiyan उत्तराखंड की हम यात्रा अस्कोट आराकोट अभियान में सैकड़ो किलोमीटर चलकर पर्यावरण और पहाड़ के चिंतकों ने यहां की पीड़ा को महसूस किया है उन्होंने देखा कि वहां से किस तरह पलायन हुआ लोगों की आजीविका के संसाधन किस तरह मिटाते चले गए सरकार और सिस्टम की अनदेखी से किस तरह से पहाड़ बर्बादी की कगार पर खड़ा है 1150 किलोमीटर की उत्तराखंड की इस लंबी यात्रा में चमोली जिले से भी करीब 150 से 200 किलोमीटर का दायरा इस यात्रा में पूरा किया गया,

मेरी पैदल पद यात्रा हिमनी से गोपेश्वर सर्वोदय तक

अस्कोट आराकोट अभियान 2024 का शुभारंभ 25 मई से 8 जुलाई जिसमें 1150 km पैदल पद यात्रा लगभग 350 से अधिक गांव से होकर गुजरी है यात्रा छह जनपदों से होकर जिसमें कुमाऊं मण्डल पिथौरागढ़ के पांगू नामक स्थान से इस अभियान की शुरूआत हुई
बागेश्वर के मानातोली बुग्याल,दुलाम खरक से अब प्रवेश चमोली के हिमनी गांव में रात्रि विश्राम सुबह बलाण से कुछ साथियों का दल आली बुग्याल और वेदनी बुग्याल,पातर नच्योंण,मिएंडफाडा,तातड सुतोल पहुचे,कुछ साथी घेस होते हुए वाण पहुचेे, वाण से कनोल,गैरी और रात्रि विश्राम पैरी, तत्पश्चात कुछ साथी सीक,पेडर गांव और रामनी पहुंचे, कुछ साथी आला से रामनी, दोनों दल इसी स्थान पर एकत्रित हुए,अगले दिन झींझी में विश्राम,फिर वहां से पाणा गए, अगले दिन सुबह क्वारी पास होते हुए करछी पहुंचे,वहा से फिर ढाक तपोवन, रैणी और कोसा गए रात्रि विश्राम ज्योतिर्मठ में किया, फिर वहां से पाखी, गरुड़ गंगा, पीपलकोटी और रात्रि विश्राम गोपेश्वर सर्वोदय चंडी प्रसाद भट्ट के यहां ठहरे,
अगले दिन पपड़ियाना,गोपेश्वर गांव मण्डल में विश्राम किया,

आखिर कौन हैं इसके प्रणेता

ऐसा कहा जाता है कि जब 1972/73 में चमोली जनपद के जोशीमठ ब्लाक के रैणी गाँव में जब पेड़ काटने वाला व्यक्ति जिनका नाम भला भाई था उनको देखा तो सभी महिलाओं ने अपने जंगल बचाने के लिए उन पेडों पर चिपक गए वहा एक भी पेड़ नहीं काटने दिया, इस चिपको आन्दोलन के प्रणेता गौरा देवी जो उस समय महिला मंगल अध्यक्ष और मंत्री बाली देवी थी
ऐसा कहा जाता है कि चिपको शब्द गोविंद सिंह रावत जो उस समय वहां के ब्लाक प्रमुख रहे, उन्होने जोशीमठ, गोपेश्वर और खल्ला मण्डल में चिपको का आंदोलन किया जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने इसका पूरे देश में प्रचार प्रसार किया,


इन्ही के कहने पर चार नौजवान साथी दो गढ़वाल से और दो कुमाऊं से 1974 में अस्कोट आराकोट अभियान शुरू किया
लेकिन मौलिक रूप से 1984 से पैदल पद यात्रा निकाली गई जो 1994,2004, 2014और 2024
तब से लेकर अब तक इस अभियान के आयोजक और संयोजक शेखर पाठक हैं
इस अभियान को पहाड नामक संस्था आयोजक के रूप मे है

अभियान का महत्व –

इस अभियान का महत्व उच्च हिमालय क्षेत्र के जल ,जंगल,जमीन वहां का रहन-सहन,खानपान,लोक कथा,लोक संस्कृति,बोली को जानना और समझना था क्योंकि उस समय इन स्थानों पर न कनेक्टिविटी न सड़क न बिजली हुआ करती थी, इनको समझने और जानने के लिए इस अभियान ने दानपुर और भोटिया समाज को जानने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई

क्या क्या हुए गांव में परिवर्तन

लगभग एक दशक में बहुत सारे परिवर्तन देखने को मिले जो गांव आबाद थे वह अब धीरे धीरे शहर की ओर खिसक रहे हैं खेत लगभग बंजर की स्तिथि में दिखे,जो लोग गांव में रह रहे हैं वह नगदी फ़सल और जड़ी बूटियों से खेतों को आबाद कर रखे हैं हिमनी,घेस,बलान, कनोल,पेरी,झींझी,पाणा गांव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, वाण गांव जो पहले अपनी खेती बाड़ी से गुजर बसर करते थे अब पर्यटन से अधिकांश लोगो ने होम स्टे, होटल,रेस्टोरेंट से उनकी आजीविका चल रही है
करछि गांव और तुगासी गांव में भी यही दिखने को मिला,रामनी गांव ठीक इनसे उलट पर शान्त वातावरण,पयर्टन से सम्बन्धित न कोई लोभ मोह,बस अपनी आजिविका खेती बाड़ी में ही जुटे रहते,अंकुर संस्था जो जड़ी बूटियों की पौध शाला है,इसकी सबसे खासबात यह है कि यहां पर चिरायता पादप जो की भारत में पहली बार सफल परीक्षण यही पर किया जा रहा है

कहा कहा हुआ पलायन

एक दशक में अधिकांश गांव खाली के खाली हो चुके हैं सर्वाधिक पलायन भोटिया जनजातियों में हुआ है क्योंकि यह समुदाय सरकारी नौकरियों में होने के कारण गांव के गांव खाली हो चुके हैं घेस,हिमनी,बलान,कनोल, रामनी,झींझी,पाणा, तुगासी करछी, रैणी, कोसा जहां मकानों के ऊपर पठाल,और देवदार की लकड़ियों से आच्छादन किया जाता था अब टिन और लेंटर ने आकार ले लिया है

यहां यहां हुए पर्यटन में विकास

वाण गांव में सबसे अधिक पर्यटन का विकास हुआ है क्योंकि यहां धार्मिक आस्था का केन्द्र लाटुधाम जो मां भागवती का धर्म भाई माना जाता,इस धाम में देश विदेश से लोग आते रहते हैं,पर्यटन की बात करू तो यहां,पूर्व दिशा की ओर विश्व प्रसिद्ध रूपकुंड,बेदनी बुग्याल,आली बुग्याल,केल्वाविनायक,शीलासमुद्र,होम कुण्ड,त्रिशूली,पश्चिम की ओर ब्रह्मताल और भेंकल ताल,उतर की ओर मोनल टॉप,दक्षिण की ओर आजन टॉप साहसिक पर्यटन का केन्द्र भी हैं,करछि और तुगासी में भी सैलानी झुण्ड के झुंड क्वारी पास के लिए खूब घूमने आते हैं, जिससे इन गांव की आजिविका इससे खूब फल फूल रहा है,
घेस गांव के ठीक ऊपर बगजी बुग्याल को उत्तराखण्ड पर्यटन विकास परिषद की ओर से ट्रेक ऑफ द ईयर 2022घोषित किया

रोजगार के संकट से कीडा जड़ी का दोहन

जब अस्कोट आराकोट अभियान की यात्रा में मैं हिमनी गांव से जुड़ा तो देखा कि लोग पहले दशक के हिसाब से इस बार लोगों में वह उत्सुकता अब नहीं दिख रही है जैसे पहले दिखती थी एक बुजुर्ग अचानक मेरे पास आया और कहने लगे कि आप शेखर पाठक की यात्रा में आए हो! मैं शांत और हल्की सी आवाज में सिर हिलाया और हां किया,कुछ देर बाद गांव में घूमा तो देखा गांव के प्रत्येक परिवार से एक एक सदस्य ही घर पर हैं
खेर जितने भी लोग थे वह इस यात्रा को देखकर बेहद ही उत्सुक थे फूल मालाओं से सभी का बहुत शानदार तरीके दिव्य,सुन्दर स्वागत किया गया,एक बात फिर मन में संकोच हो रहा था कि सबकुछ बहुत ही अच्छी व्यवस्था थी चाहे खाना,रहना आदि आदि, परन्तु एक और बुजुर्ग मेरे पास आए कहने लग गए कि यहां के प्रत्येक परिवार के सदस्य कीडा जड़ी के लिए गए हैं, यही स्थिति कनोल,गैरी,पैरी,झींझी,पाणा की थी,गांव के गांव सारे कीड़ाजड़ी को निकालने के लिए लगभग दो के लिए जंगल में घोड़े खचरों में सामान लेजाकर वहीं रहते हैं इसका नतीजा यह हुआ कि उच्च हिमालय जहां वर्ष भर बर्फ रहती थी वहां आवागमन होने के कारण धीरे धीरे पर्यावरण प्रदूषित और तापमान पर भी इसका बहुत ज्यादा असर होने लगा है लेकिन अपने रोजगार की तलाश में हिमालाय की चिंता नहीं करते हुए यहां से इसका दोहन किया जा रहा है

सरकारी योजनाओं का सही से इस्तेमाल न होना

घेस-हिमनी 2017/18 में एक सरकारी योजना के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री के सहयोग से मटर उत्पादन के लिए योजना चलाई थी, कहा गया था कि यहां से प्रत्येक वर्ष एक करोड़ की मटर उत्पादन किया जा रहा है परंतु जब हम अ अ अ में वहा गांव में भ्रमण किया तो धरातल पर शून्य,हां ज़रूर कुटकी और कूट अत्यधिक मात्रा में लगाई हुई है,
होम स्टे के लिए सरकार ने सब्सिडी के तहत बहुत ही अच्छी योजना चलाई हुई है लेकिन उसको भी व्यवस्थित तरीके से नहीं चलाए जा रहे हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जब हम पाणा से क्वारी पास होते हुए करछी गांव पहुंचे तो वहां दिखा,पहले तो हम पांच साथी जिस होम स्टे में ठहरे न लाइट,खाने में 20रोटी एक छोटी कटोरी दाल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला
झींझी गांव में एक पर्यटन आवास तो दिखा पर उम्मीद भी जगी कि यहां ठहरने के लिए अच्छी व्यवस्था होगी पता चला कि जिस व्यक्ति को दिया गया है उन्होने वहां घास रखा है न जानें कई उदाहरण और हैं

सड़क कटान से जंगल और नदी पर संकट

इस छोटी सी यात्रा में मैंने सर्वाधिक परिर्वतन देखा सड़क के जाल के जाल बिछे हुए दिखे
लेकिन इन जालों के कारण जहां जहां से सड़क बनाए गए हैं उसके आस पास सारे जंगल नष्ट कर दिए गए हैं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमने गैरी से कनोल,पैरी से घूनी की सड़क जब हम पैरी से सीक आला होते हुए आ रहे थे तो जान जोखिम में डालकर आए,न डंपिंग जोन, न सड़क का अलायमेंट ठीक, सड़क की मिट्टी सीधे जंगल और फिर वही मिट्टी नदी में गिर रहा था, सीक गांव के आसपास तो हमको जिलेटिन के जिलेटिन जाल बिछी हुई मिली
यह भयावह स्थिति हमने प्रत्यक्ष देखा,

महिलाओं की गांव में भागीदारी

इस अभियान में मुझे बहुत कुछ जानने और पहचानने को मिला जितने भी गांव में हमारे रहने की व्यवस्था थी लगभग सभी गांव में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी बखूबी निभाया,गांव में महिला मंगल दल अध्यक्ष और उनकी पूरी टीम अतिथि सत्कार, खाना और रहने की व्यवस्था, अपनी बोली, भाषा ,लोक संस्कृति पहनावा, तीज त्यौहार, गढ़वाली बोली में महिलाएं और छोटे बच्चों ने बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी

 

जैव विविधता

पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा, परिरक्षण और प्रबंधन से यह सुनिश्चित करना है हमारा कर्तव्य है लेकिन जिस तरह से जंगलों का दोहन किया गया है इसी का परिणाम सभी को झेलना पड़ रहा है जब हमारी यात्रा चल रही थी उस समय जून महीने चल रहा था उच्च हिमालय क्षेत्रों में बिल्कुल भी बर्फ नहीं दिखाई दे रही थी नदियों में पानी बहुत कम होने लग गया था, जनपद चमोली में इस साल लगभग 170 छोटे छोटे जल स्त्रोत सूख गए,इसका
कारण तापमान में वृद्धि, जिस तरह से जंगलों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है वह समय दूर नहीं जब एक एक बूंद के लिए सभी जीव जंतु तरस जाएंगे,हमने दिन के समय हिमनी, बलान, वाण और कनोल के बीच में कुगीना टॉप पर लगभग 25 से 30 सेल्सियस तापमान महसूस किया वहीं स्थिति क्वारी पास टॉप की भी थी बसरते बुग्यालों में ठंडी ठंडी तेज हवा चल रही थी नंदादेवी पर्वत चोटी पर सफेद चादर दिखाई दे रही थी परन्तु
धीरे धीरे वहा भी बर्फ पिघलने से नंगे पर्वत श्रृंखलाएं दिख रही हैं पेड़ पौधे न लगने से भू धसाव का प्रत्यक्ष उदाहरण कनोल गांव का फाकी तोक जहां पर 70 से 80 परिवार रहा करते थे,

ज्योतिर्मठ धार्मिक, सामरिक दृष्टि से सांस्कृतिक और व्यापारिक नगर का अस्तित्व

इत्तेफ़ाक या संयोग कह सकते हैं जून माह में जब हमारी यात्रा इस रूट पर चल रही थी तो उसी समय जोशीमठ का नाम वैधानिक रूप से ज्योतिर्मठ हो गया है इतिहास,वेद,पुराणों में इसी नाम से जाना जाता था इस पहाड़ी शहर का अपना एक अलग ही महत्व है धार्मिक रूप में बद्रीनाथ धाम जाने के लिए इस शहर में ही लोगों की पहली पसंद थी शीतकाल में यहां नरसिंह मंदिर भगवान बद्री विशाल यहां विराजमान होते हैं,सांस्कृतिक दृष्टि से भोटिया जनजाति का अपना एक अलग ही पहचान है रहन सहन, पहनावा, रीति रिवाज और समुदाय से बिल्कुल भिन्न है सामरिक दृष्टि से सन 1962 चीन युद्ध से पहले तिब्बत के साथ भोटिया समाज का अपना एक अलग ही महत्व था अपने यहां से लकड़ी और अनाज वहा से नमन लिया करते थे जो व्यापार अब पूर्ण रूप से प्रतिबंध हो गया है

कहां है लॉर्ड कर्जन रूट ? –

अस्कोट आराकोट अभियान पैदल यात्रा लॉर्ड कर्जन रूट से होती है यह यात्रा बागेश्वर माना तोली बुग्याल से दुलाम खर्क होते हुए चमोली के घेस,हिमनी,बलान,वाण, कनोल, रामनी तक, ऐसा कहा जाता है कि लॉर्ड कर्जन इस रास्ते से रामणी तक पहुंचे थे अभी भी उस जमाने का एक डाक बंगला भी है, इससे आगे लॉड कर्जन नहीं जा पाए लेकिन उन्होंने झींझी,पाना ईरानी, कुंवारी पास होते हुए, करछी ढाक तपोवन तक कर्ज़न रूट है,

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