जब हम भये सयान तो हमहूं के सोलह बसंत कै रंग चढ़ा, आंख पे चश्मा, हाथ मां मोबाईल औ कपड़ा कै किर्च रहै खड़ा।
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जब हम भये सयान तो हमहूं के सोलह बसंत कै रंग चढ़ा,
आंख पे चश्मा, हाथ मां मोबाईल औ कपड़ा कै किर्च रहै खड़ा।
हर वक्त यारन कै संग फौज रहै हम सब कै खूबै मौज रहै,
बाग बगीचा खूबै घूमी औ पढय लिखै का ना कबहुंक मन कहै।
छूटल स्कूल जौ जीवन मां एक जिम्मेदारी आई गईल,
रोजी रोजगार के चक्कर में माथे पै बल छाय गईल।
गांव देश कै लोगन के अंखियन मां हम चढल रहिल ,
उ कहैं कि निठल्ला घूमत ई आखिर कईसन पढ़ाई पढल रहिल।
सुन सुन उपहास लोगवन कै माई बापू संग हमहूं दुखी रहल,
पढै के वखत गर पढ़ें होईत काहें का कोई कुछू कहत।
नौकरी तो चिंता कै विषय रहल दूजा विषय लुगाई के,
मिलिहै नौकरी तबै सम्भव होई सपना यार सगाई कै।
वहि वखत ख्याल इहै आवै हे प्रभु हम सब रडुवन कै का होई,
ना नौकरी मिलल ना बियाह भईल सोच-सोच इहै रोई।
जवन गति हमार भईल उ बिपति ना केहू पै अब आवै,
नयी पीढ़ी से यहै गुज़ारिश है पढ़-लिखकर आपन भाग्य बनावै।
शिक्षा मान दिलावत है,शिक्षा रोजगार दिलावत है,
मेंहनत से जो ग्रहण करत है शिक्षा उ सगरौ सुख पावत है।
पंकज पाण्डेय (ललित) अयोध्या धाम