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अमेरिका की इकोनॉमी की पॉलिसी का सूत्र क्या है ? 

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अमेरिका की इकोनॉमी की पॉलिसी का सूत्र क्या है ? 

By पूर्व प्रोफेसर लल्लन प्रसाद

वरिष्ठ अर्थशास्त्री

‘अमेरिका पहले’ और पुन: अमेरिका को सबसे अधिक शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र बनाने की राष्ट्रपति ट्रंप की नीति से धीरे-धीरे बाहर से आयात होने वाले समान और सेवाएं तथा अमेरिका में पढ़ने, नौकरी या व्यापार करने और वहां बसने के रास्ते प्रतिबंधित हो रहे हैं। जैसे को तैसा नीति के अंतर्गत कई देशों पर टैरिफ में भारी वृद्धि की जा चुकी है, भारत पर भी आंच पड़ सकता है। अवैध रूप से अमेरिका में घुसने और वहां बसने के खिलाफ ट्रंप ने बड़ा कदम उठाया है, और ऐसे लोगों को अमेरिका से बाहर निकाला जा रहा है। अन्य कई देशों की तरह भारतीय नागरिकों को भी बड़ी संख्या में निर्वासित किया जा रहा है। नई नीति में अमेरिका में जन्म से नागरिकता के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है, यद्यपि मामला वहां के सुप्रीम कोर्ट में आ गया है। अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों को भी नई नीति कुछ प्रभावित करेगी साथ ही साथ उन लोगों के लिए भी कठिनाई पैदा कर देगी जो ग्रीन कार्ड होल्डर है और जिनके बच्चे अमेरिका में पैदा हुए हैं/ होने को है वे अब जन्म से नागरिकता अधिकार से वंचित हो गए हैं।

उच्च शिक्षा प्राप्त विशेषज्ञों जो ऊंचे पदों पर अमेरिकी कंपनियों, सरकार और संस्थानों में काम कर रहे हैं उनके ऊपर नई नीति का कोई खास प्रभाव नहीं होगा, अमेरिका को उनकी जरूरत है। तकनीकी क्षेत्र में विशेषज्ञों की आवश्यकता पूर्ति से कम है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नई तकनीक के जानकारों की बड़ी संख्यां में वहां की माइक्रोसॉफ्ट, गूगल जैसी कंपनियों द्वारा मांग है। ट्रंप के निकटतम सलाहकार अरबपति एलान मस्क विदेशों से स्किल वर्कर्स को अमेरिका लाने की सिफारिश करते रहे हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त विशेषज्ञों को आकर्षित करने के लिए अमेरिका प्रतिवर्ष 65 000 एच1बी वीजा लॉटरी सिस्टम से इशू करता रहा है जो जारी रहेगा। इस वीजा का सबसे अधिक लाभ भारतीयों को हो रहा है, 2022 और 2023 में जारी किए गए इस वीजा में 72 प्रतिशत हिस्सा भारतीयों की रही।

अमेरिका की धरती पर पैदा होते ही नागरिकता के अधिकार का प्रावधान अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन में 1868 में की गई थी। इसके अंतर्गत अमेरिकी धरती पर पैदा होने वाला बच्चा अमेरिका का नागरिक बन जाता है उसके माता-पिता वैध अमेरिकी नागरिक हो या अवैध इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने यू एस बनाम वांग किम (1898) केस में इस नियम की पुष्टि कर दी थी जो अब तक चला आ रहा था। राष्ट्रपति ट्रंप ने गद्दी पर बैठते ही अपने शासकीय अधिकार से इस कानून को समाप्त कर दिया। दूसरे देशों के लोग जिनके पास एच1बी वीजा (जो अमेरिकी कंपनियों की सिफारिश पर सरकार वहां काम करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त प्रोफेशनल्स को देती है), है या जो ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं वहां पर, उनके बच्चे भी अब नए नियम के अंतर्गत जन्म से नागरिक नहीं बन पाएंगे। प्रवासी भारतीयों पर भी इसका असर पड़ेगा। अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा जो अभी तक वहां के नागरिक नहीं बन पाए हैं। जन्मजात वीजा के नियम का दुरुपयोग भी होता रहा है गर्भवती महिलाएं दूसरे देशों से जाकर वहां बच्चे को जन्म दे कर उन्हें अमेरिकी नागरिक बना देती है। वीजा नियम में बदलाव का यह भी एक कारण है।

अमेरिका में दूसरे देशों से निवेश बढ़ाने के लिए भी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस संबंध में वहां की पुरानी नीति में परिवर्तन कर दिया है। 5 मिलियन डॉलर या इससे अधिक निवेश करने वालों को ई बी-5 वीजा (जिसमें निवेश की सीमा कम थी) की जगह गोल्ड कार्ड इशू किया जाएगा, निवेशकों को शीघ्र वहां की नागरिकता मिल जाएगी, जिसके लिए प्रोफेशनल्स और अन्य लोगों को वर्षों इंतजार करना पड़ता है। यह गोल्ड कार्ड दुनिया भर के धनी लोगों को आकर्षित करने की योजना है, इसके अंतर्गत निवेशकों को टैक्स में भी छूट मिलेगी। भारत से बहुत अधिक लोग इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएंगे। बड़ी संख्या में निवेशकों को लाभ पहुंचाने की जगह अमेरिका अब निवेशकों से लाभ कमाने की योजना पर काम कर रहा है। कनाडा और यूरोप के कई देशों की तरह यह योजना भी विकासशील देशों की संपत्ति अमेरिका मे निवेश बढ़ाने की है ना कि उनकी मदद करने की।

अमेरिकी विश्वविद्यालयों और रिसर्च इंस्टीट्यूट्स में विदेशी छात्रों के दाखिले के लिए सरकार 20000 एफ1वीजा प्रतिवर्ष ईशु करती है जो अभी जारी रहेगी। शिक्षा पूरी करने पर छात्र एच1बी वीजा के लिए कंपनियों द्वारा स्पॉन्सरशिप मिलने पर आवेदन कर सकते हैं। पहले इसके लिए काम के अनुभव का प्रावधान नहीं था, किंतु नई योजना में ओपीटी (ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग) के अंतर्गत 1 साल की ट्रेनिंग आवश्यक कर दी गयी है। इससे आवेदन करने वालों की संख्या में कमी आ गयी है, भारत से गए छात्र भी इस बदलाव से प्रभावित हो रहे हैं।

 

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