राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) से सचिव दीपक कुमार ने शिष्टाचार भेंट की
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राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) से बुधवार को सचिव दीपक कुमार ने शिष्टाचार भेंट की
इस अवसर पर उन्होंने राज्यपाल को संस्कृत शिक्षा विभाग के अंतर्गत किये जा रहे अभिनव प्रयासों एवं संस्कृत ग्रामों में ग्रामीणों को संस्कृत संभाषण के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परंपरा के संवर्धन एवं सरंक्षण हेतु प्रदान किये जा रहे प्रशिक्षण के बारे में जानकारी दी।
राज्यपाल ने उपरोक्त कार्यों हेतु सचिव की सराहना करने के साथ-साथ कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के अंतर्गत ‘मेरी योजना ‘ पुस्तक के अगले संस्करण पर कार्य करने हेतु भी निर्देशित किया।
एक नजर संस्कृत भाषा और महत्व पर
संस्कृत भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। यह भाषा लगभग 1500 BC के आसपास विकसित हुई, और इसे विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक माना जाता है। संस्कृत का जन्म भारत में हुआ और यह वेदों, उपनिषदों, महाकाव्यों जैसे महाभारत और रामायण की भाषा रही है। इसकी संरचना और व्याकरण का प्रारूप पाणिनि ने 4वीं शताब्दी BCE में रचा, जिसने इसे और भी अधिक व्यवस्थित और वैज्ञानिक बना दिया।
संस्कृत का महत्व केवल इसकी प्राचीनता ही नहीं है, बल्कि इसकी समृद्ध शब्दावली, व्याकरणिक संरचना और साहित्यिक संपदा में भी है। यह भाषा न केवल धार्मिक ग्रंथों का माध्यम रही, बल्कि विज्ञान, गणित, ज्योतिष, कला, और दर्शन के क्षेत्र में भी इसकी अहम भूमिका है। संस्कृत के अध्ययन से भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन, और परंपराओं को समझना आसान होता है। यह भाषा न केवल भारत में बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी अध्ययन और अनुसंधान का विषय है।
आज के युग में संस्कृत का महत्व पुनः बढ़ रहा है, क्योंकि यह भाषा भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इसके अध्ययन से मनोबल बढ़ता है, मानसिक संतुलन बनता है और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण होता है। संस्कृत का संरक्षण और प्रचार-प्रसार आवश्यक है ताकि यह विश्व की धरोहर बनी रहे। इस भाषा का अध्ययन कर हम अपने अतीत को समझ सकते हैं और अपने सांस्कृतिक मूल्यों को सम्मानित कर सकते हैं।
संक्षेप में, संस्कृत न केवल भारत की प्राचीनता का प्रतीक है, बल्कि इसकी संरचना और साहित्यिक संपदा हमें मानवता की सर्वोत्तम विरासत प्रदान करती है। इसे संजोना और बढ़ावा देना हम सब का कर्तव्य है।